भारत के गेहूं निर्यात बैन का असर: दुनिया के पास बचा सिर्फ 70 दिन का गेहूं, रोटी को तरसेगा यूरोप !
punjabkesari.in Monday, May 23, 2022 - 01:07 PM (IST)
वॉशिंगटन: यूक्रेन पर रूस के हमले से खाद्यान सप्लाई को लेकर पैदा हुए गंभीर महासंकट पर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया के पास मात्र 10 सप्ताह यानि 70 दिन का ही गेहूं शेष बचा है। यह साल 2008 के बाद अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि दुनिया में खाद्यान का ऐसा संकट 'एक पीढ़ी में एक ही बार होता है।' इस बीच अब दुनिया की निगाहे जापान में होने जा रहे क्वॉड देशों की बैठक पर टिक गई है जहां गेहूं संकट का मुद्दा प्रमुखता से उठ सकता है।
पश्चिमी देशों को डर सता रहा है कि रूसी राष्ट्रपति जानबूझकर वैश्विक खाद्यान सप्लाइ को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं और यूक्रेन के कृषि उपकरणों को नष्ट कर रहे हैं, उनके गेहूं को चुरा रहे हैं। इस बीच भारत के गेहूं निर्यात पर बैन लगाने से पश्चिमी देश टेंशन में आ गए हैं। बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन क्वॉड की जापान में हो रही बैठक में गेहूं निर्यात का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठा सकते हैं। अमेरिका ने कहा है कि क्वॉड बैठक में गेहूं संकट पर चर्चा होगी। इस दौरान बाइडेन पीएम मोदी से गेहूं के निर्यात पर बैन हटाने के लिए गुहार लगा सकते हैं।
गो इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अब मात्र 10 सप्ताह तक ही गेहूं की सप्लाइ का स्टॉक बचा है। दरअसल, रूस और यूक्रेन दुनिया के एक चौथाई गेहूं की आपूर्ति करते हैं और पश्चिमी देशों को डर है कि पुतिन गेहूं को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। रूस में इस साल गेहूं की फसल शानदार हुई है और पुतिन इसे नियंत्रित कर सकते हैं। वहीं खराब मौसम की वजह से यूरोप और अमेरिका में गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा है।
गो इंटेलिजेंस की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सारा मेनकर ने चेतावनी दी कि खाद्यान की सप्लाइ कई 'असाधारण' चुनौतियों से जूझ रही है। इसमें फर्टिलाइजर की कमी, जलवायु परिवर्तन और खाद्यान तेल तथा अनाज का रेकॉर्ड कम भंडार इसकी वजह है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कहा कि बना तत्काल और आक्रामक वैश्विक प्रयास के हम इंसानों के लिए असाधारण मानवीय त्रासदी और आर्थिक नुकसान की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा संकट एक पीढ़ी में केवल एक ही बार आता है और यह भूराजनीतिक दौर को नाटकीय तरीके से बदल सकता है
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