पाक में बदनामी से ज्यादा दुनियाभर में मशहूर हुए, मंटो

punjabkesari.in Saturday, Jan 18, 2020 - 09:54 PM (IST)

नई दिल्लीः अक्सर लेखक या तो मशहूर होते हैं या फिर गुमनाम, लेकिन पाकिस्तान में सिमटे लेखक सआदत हसन मंटो इस कदर बदनाम किए गए कि, वह बेहद मशहूर हो गए। पाकिस्तान के इस लेखक के लिए एक दौर ऐसा भी आया, जब वह अपने देश से ज्यादा हिंदुस्तान सहित पूरी दुनिया में मशहूर हो गए। मौत के 6 दशक बाद अब पाकिस्तान का लेखक सआदत हसन मंटो उर्दू साहित्य की दीवारें लांघकर अनूदित कहानियों के जरिये दुनिया भर के पाठकों के मन में समा चुका है। लोकप्रियता के मानदंड पर मंटो आज मैक्सिम गोर्की, एंटेन चेखव, मोपासां के साथ भारत के प्रेमचंद और शरतचंद-रवींद्रनाथ की बराबरी में खड़े हैं। हालांकि, यह अलग बात है कि इससे तमाम आलोचक और लेखक असमहत हैं। बावजूद असहमति के वह यह भी जानते हैं कि मंटो आज भी जिंदा है, अपनी कृतियों के जरिये-रचे गए किरदारों के रूप में।

 

 

साल 1912 में भारत के पंजाब (समराला) में पैदा हुए सआदत हसन मंटो को भारत और पाकिस्तान के बंटवार ने अंदर तक तोड़कर रख दिया। यह अलग बात है कि बंटवारे को अपनी बदकिस्मती मानते हुए पाकिस्तान को चुनने वाले सआदत हसन ने कट्टर मुल्क में जबरदस्त घुटन महसूस की। यही वजह रही कि यह घुटन उनकी कहानियों-रचनाओं में रचे-गढ़े गए किरदारों के जरिए दिखती है। बंटवारे के दौरान दंगों को उन्होंने अपनी रचनाओं में ऐसे किरदारों को खूब जगह दी है, पाठकों को कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' लिखने वाले इकबाल ने जब पाकिस्तान में रहने को अपना मुकद्दर चुना तो किसी को उम्मीद भी न रही होगी कि यह मुल्क अपनी कट्टरता और धार्मिक उन्माद के लिए पूरी दुनिया में जाना जाएगा। मंटो ने उसी कट्टर मुल्क में रहकर सात सालों के दौरान पाकिस्तान में मौजूद सामाजिक विद्रूपता को अपनी साहित्यिक कृतियों में इस तरह परोसा कि रिश्ते नंगे और बदरंग हो गए। और यह रंग आगे चलकर मंटो की रचनाओं में और गहरा होता गया। मंटो खुद लिखते हैं-'मत कहिये कि हजारों हिंदू मारे या हजारों मुसलमान मारे गए, सिर्फ ये कहिये कि हजारों इंसान मारे गए और ये इतनी बड़ी त्रासदी नहीं कि हजारों लोग मारे गए... सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि हजारों लोग बेवजह मारे गए।'


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Edited By

Ashish panwar

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