फिर घायल हुआ हिमालय, 58 साल पहले भी चीन ने दिया था धोखा

punjabkesari.in Wednesday, Jun 17, 2020 - 09:48 AM (IST)

नेशनल डेस्क: 1956 तक चीन अक्साईचिन के जिस क्षेत्र तक दावा करता था गलवन नदी उसके पश्चिम में थी। मगर 1960 में चीन ने नदी के पश्चिमी तट ही नहीं श्योक नदी घाटी से जुड़ी पर्वतमाला तक अपना दावा जताना शुरू कर दिया। हालांकि भारत लगातार अक्साईचिन को अपना क्षेत्र बताता रहा है। 

 

भारत बनाम चीन सैन्य क्षमता भारत चीन
टैंक 4292 3500
हेलीकॉप्टर 722 911
क्षेत्र तोपखाने 4,060 3600
 लड़ाकू विमान 538 1,232
सैन्य शक्ति 3.5 मिलियन 2.7 मिलियन


1962 में क्या हुआ था
गलवन घाटी को चीन अपना क्षेत्र बताने लगा था और दोनों देशों के जवानों के बीच तनातनी होने लगी थी। 4 जुलाई 1962 को गोरखा पलटन ने अपने क्षेत्र में गलवन घाटी में एक ऊंची पहाड़ी पर अपनी चौकी बना ली। इस चौकी की वजह से चीन का सेम्जुंगलिंग क्षेत्र से संपर्क कट गया। इसके बाद चीनी सैनिकों ने गोरखा पलट की। इस चौकी की चारों ओर से घेराबंदी कर दी। भारत सरकार ने चीन को चेतावनी दी कि चीन अपनी सैनिकों को हटा ले भारत यह क्षेत्र किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा। चीनी सेना ने चार महीने तक इस चौकी की घेराबंदी जारी रखी। भारतीय सेना हैलिकॉप्टर की मदद से अपने सैनिकों को चौकी पर रसद पहुंचाती रही। श्रीनाथ राघवन ने अपनी किताब वार एंड पीस इन मॉडर्न इंडिया तथा ब्रिगेडियर अमर चीमा ने अपनी किताब द क्रिमसन चिनार : द कश्मीर कॉनफ्लिक्ट में 1962 में चीन के साथ बनी परिस्थितियों का जिक्र कियाहै। 

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ऐसे शुरू हुआ युद्ध 
20 अक्तूबर 1962 को गलवन की चौकी पर भारतीय कंपनी तैनात की गई। इस पर चीन के पीएलए के सैनिकों ने भारी बमबारी कर दी। चौकी पर कब्जे के लिए पूरी चीन ने पूरी बटालियन आगे बढ़ा दी। चीन के इस हमले में 33 भारतीय जवान शहीद हुए और कई जख्मी। कंपनी कमांडर को बंदी बना लिया गया। चीनी सेना पश्चिम में आगे बढ़ते हुए रेजांग लॉ और पूर्व में त्वांग तक आगे बढ़ आई। 20 नवंबर 1962 को चीन ने तब दोनों सेनाओं की स्थिति को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) कहते हुए युद्धविराम किया। 

 

42 दिन से क्या हो रहा है पूर्वी लद्दाख में

  • 5 मई : पूर्वी लद्दाख में पंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के जवान भारतीय क्षेत्र में घुस हुए थे और हमारे जवानों से झड़प की। कुछ को हल्की चोटें आईं।
  • 8 मई : पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर करीब पांच और जगह दोनों देशों के जवान आमने-सामने डट गए। 
  • 9 मई : उत्तरी सिक्किम में नाथू लॉ गश्त के दौरान दोनों देशों के जवानों में झड़प हुई। हाथापाई में कुछ सैनिक घायल हुए। 
  • 12 मई : चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने हैलिकॉप्टर भेजे तो भारतीय सेना ने भी लेह एयरबेस पर लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई का बेड़ा भेजा। 
  • 14 मई : सेटलाइट तस्वीरों ने चीनी घुसपैठ की हरकतों का खुलासा किया। चीन ने गलवन घाटी में करीब 100 टैंट लगा लिए थे। बंकर बन रहे थे। टैंक और गाडिय़ां खड़ी थीं। पंगोंग त्सो और डमचौक में भी टैंट लगे थे। 
  • मई का आखिरी सप्ताह : जवानों के आमने-सामने डट जाने से पैदा हुए तनाव को कम करने के लिए दोनों तरफ से बटालियन कमांडर और मेजर स्तर की वार्ताएं हुई मगर तनाव बना रहा।
  • 6 जून  : दोनों देशों में लैफ्टीनैंट स्तर की वार्ता हुई। यह वार्ता कुछ प्रभावी होती दिखी, लगा कि तनाव कम होगा। 
  • 10 जून   : पूर्वी लद्दाख में चीन जवानों के दो किलोमीटर पीछे हटने की खबर मीडिया में आई। इसे 6 जून की वार्ता का प्रभाव माना गया और तनाव खत्म होने की उम्मीद की जाने लगी।  
  •  15 जून  : गलवन में दोनों देशों के जवानों में हिंसक झड़प हुई और भारत के एक कर्नल और दो जवान शहीद हो गई, चीन के भी पांच जवान मारे जाने की सूचनाहै।
  • 16 जून  : चीन की हरकत की सूचना सामने आने के बाद भारत ने नाराजगी जताई। कूटनीतिक प्रयास शुरू किए। 

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1975 के बाद से भारत-चीन में फायरिंग नहीं हुई
भारत और चीन के बीच आखिरी बार फायरिंग 1975 में हुई थी। 1967 में नाथुला और चो ला में मुंह की खाने के बाद चीन आठ साल तक शांत रहा था। 20 अक्तूबर 1975 को असम राइफल के गश्ती दल पर तुलुंग ला में चीनी सैनिकों ने घात लगाकर हमला किया था। इस हमले में असम राइफल के चार जवान शहीद हो गए थे। 

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यह है चीन की कमजोरी
चीन की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि दुनिया में उसके दोस्त बहुत कम हैं। भारत को इसका कूटनीतिक लाभ उठाना चाहिए। निर्गुट की नीति त्याग देनी चाहिए। 1971 में इंदिरा गांधी ने भी निर्गुट की नीति  छोड़ कर रूस से सैन्य समझौता किया था। चीन से नाराज चल रहे पश्चिमी  देशों और एशियाई देशों से मिलकर हमें चीन को घेरना चाहिए। मूल उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा है। 


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vasudha

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