पूर्व जस्टिस नरीमन ने की देशद्रोह कानून को खत्म करने की वकालत, बोले- खुलकर सांस ले सकेंगे नागरिक

punjabkesari.in Monday, Oct 11, 2021 - 06:32 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट से देशद्रोह कानून को रद्द करने की पैरवी की है। उन्होंने कहा, “सरकारें आएंगी और जाएंगी। अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे और धारा 124ए और यूएपीए के कुछ हिस्सों को खत्म करे, फिर यहां के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस लेंगे।“ उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर UAPA कानून के भी कुछ हिस्सों को रद्द करने की मांग की है।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को कानून की किताब से आपत्तिजनक कानूनों को हटाने का अधिकार सरकार पर नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि कानून को खत्म करने के लिए न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि नागरिक अधिक स्वतंत्र रूप से सांस ले सकें। उन्होंने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट से केंद्र में लंबित राजद्रोह कानून के मामलों को वापस नहीं भेजने का आग्रह करूंगा। उन्होंने धारा 124 ए और यूएपीए के आक्रामक हिस्से को खत्म करने की मांग की।

अंग्रेजों ने भारतीयों के खिलाफ किया था कानून का इस्तेमाल’
विश्वनाथ पसायत स्मारक समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में उन्होंने अपने भाषण में कहा कि लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले द्वारा तैयार किए गए मूल भारतीय दंड संहिता (IPC) में राजद्रोह नहीं था, हालांकि यह उनके ड्राफ्ट वर्जन में मौजूद था। “देशद्रोह का प्रावधान मसौदे में था लेकिन, अंतिम पुस्तक में नहीं था लेकिन, बाद में इसे खोजा गया और फिर से तैयार किया गया। नरीमन ने बताया कि कैसे अंग्रेजों ने प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों सहित भारतीयों के खिलाफ कानून का इस्तेमाल किया।

UAPA अंग्रेजों का कानून है- पूर्व जस्टिस रोहिंटन नरीमन
नरीमन ने कहा कि “इमिनेंट लॉलेस एक्शन” वर्तमान में इस्तेमाल किया जाने वाला एक मानक है जिसे यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट द्वारा ब्रैंडेनबर्ग बनाम ओहियो (1969) में स्थापित किया गया था। क़ानून की किताब में असंतोष जारी है और UAPA अंग्रेजों का कानून है क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं है और इसमें न्यूनतम 5 साल की कैद है। यह कानून अभी जांच के दायरे में नहीं है। इसे भी देशद्रोह कानून के साथ देखा जाना चाहिए।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि अगर आप शरारत के नियम को लागू करना चाहते हैं, तो औपनिवेशिक कानून अपनी महिमा में सामने आता है और भारतीय नागरिकों को इसमें जकड़ लेता है। अगर प्रावधान का शाब्दिक पठन हिंसा नहीं है और आप इसे देशद्रोह के दायर में नहीं रख सकते, इस पृष्ठभूमि में इस विशाल लोकतंत्र में धारा 124ए कैसे बची हुई है?


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Content Writer

Yaspal

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