अपराजिता पूजन: अपने दुश्मनों पर विजय पाने के लिए करें ये तांत्रिक उपाय

punjabkesari.in Tuesday, Oct 08, 2019 - 07:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

विजय दशमी के दिन ‘माता अपराजिता’ का पूजन किया जाता है। विजयदशमी का पर्व उत्तर भारत में आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्र संपन्न होने के उपरांत मनाया जाता है। शास्त्रों में दशहरे का असली नाम विजयदशमी है, जिसे 'अपराजिता पूजा' भी कहते हैं। अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था। यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है।

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विरोधियों से मुक्ति पाने के लिए विजय दशमी पर करें ये तांत्रिक उपाय- व्यापार में, भूमि संबंधी, कोर्ट कचहरी अथवा सरकारी कार्यों में उलझनों इत्यादि से बचने के लिए आज ये ज्योतिष एवं तंत्र आधारित सुगम उपाय बताया जा रहा है, जिससे शीघ्र लाभ प्राप्त हो सकता है। 

बाज़ार से ये सामान लें- हरा मिठाई वाला पेठा-1, सफेद वस्त्र- 1 चौथाई मीटर, 2 सिंदूर के पैकेट, 20 ग्राम लौंग, काले साबुत मांह-20 ग्राम, काले तिल-20 ग्राम, काली सरसों-20 ग्राम, लोहे की कील-7, चाकू- एक, जल की डिब्बी- 2

उपाय करने की विधि- सफेद वस्त्र बिछा कर चाकू की नोक से उसके चारों कोनों में विपक्षी का नाम उकेर दें और कपड़े के केंद्र में भी ऐसा ही करें। अब हरे पेठे के ऊपर नीचे से ऊपर को अपनी तर्जनी उंगली से काजल से नाम लिख दें। पेठे को तेज चाकू से जहां नाम लिखा है बीचों-बीच काट दें। कटे हुए दोनों भागों के सफेद भाग भी काजल से काले कर दें। बाकी का सारा सामान पेठे के कटे हुए भागों के बीच रख कर सफेद कपड़े में लपेट कर किसी भी चलते पानी में दोपहर के बाद अथवा सूर्यास्त के समय प्रतिद्वंद्वी का नाम लेकर जल प्रवाह करें और कार्य पूरा होने की विनती करें।

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फिर माता अपराजिता के सामने दीपक जला कर अपराजिता स्त्रोत का निरंतर 40 दिन तक पाठ करें, साथ में अखंड दीपक 40 दिन जलाएं।

ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है। अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता- 
शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम्।
असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।
बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम्।
अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।

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Niyati Bhandari

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