ऑफ द रिकॉर्डः ‘कोविड टीके को लेकर भारतीय नियामकों के रवैये से पैदा हुए संदेह’
punjabkesari.in Sunday, Nov 22, 2020 - 05:56 AM (IST)
नई दिल्लीः कोविड-19 का टीका विकसित करने के लिए जब से हैदराबाद स्थित फार्मा कंपनी भारत बायोटैक भारतीय आयुष अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.) की पार्टनर बनी है, इस प्रोजैक्ट को लेकर संदेह जताए जाने लगे थे। पहली बात, चूंकि आई.सी.एम.आर. ड्रग्स एवं वैक्सीन नियामक है इसलिए यदि वह किसी निजी कंपनी से पार्टनरशिप करती है तो वह अन्य कंपनियों के बजाय उसके पक्ष में काम करेगी। भारत हर हाल में कोविड का टीका चाहता है, इसलिए किसी ने भी इस मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं की थी। परंतु हितों का टकराव तो मौजूद था ही। फिर आई.सी.एम.आर. ने यह घोषणा की कि कोविड टीका 15 अगस्त को आ जाएगा।
जाहिर है प्रधानमंत्री ने लाल किले के प्राचीर से 15 अगस्त को टीका आने की जो घोषणा की थी, यह उससे जुड़ी हुई थी। जब इस बात पर शोर मचा कि यदि ट्रायल के पहले और चौथे चरण को इकट्ठा कर दिया जाए तो भी कंपनी ट्रायल पूरे कैसे करेगी, तो आई.सी.एम.आर. ने यह कहकर पीछा छुड़ाया कि उसके वक्तव्य को गलत समझा गया। दिसम्बर आने वाला है और अभी तक कोई टीका नहीं आया है। इसके बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल की घोषणा सामने आई कि यदि टीके की प्रभावशीलता 50-60 प्रतिशत भी हो तो भी टीका लगाया जाना शुरू कर दिया जाए।
उल्लेखनीय है कि वैश्विक मानक के अनुसार टीके की प्रभावशीलता कम से कम 75 प्रतिशत होनी चाहिए परंतु ड्रग कंट्रोलर जनरल ने उसे घटाकर 50-60 प्रतिशत कर दिया। यह घोषणा चिकित्सक जगत को पसंद नहीं आई। जो हो, देश को कोविड टीके की बड़ी जरूरत है और प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से लगभग हर महीने इसे लेकर बैठक कर रहे हैं। टीके के लिए बेसब्र आई.सी.एम.आर. ने टीका विकसित करने के लिए कंपनियों को नियमों में ढील दे दी और ट्रायल के विभिन्न चरण इकट्ठा करने की अनुमति समेत सभी प्रकार की प्रशासनिक व प्रक्रियात्मक क्लीयरैंस दे दी।
इस सबके बीच एक बात जिससे फार्मा उद्योग व दुनिया को धक्का लगा, वह थी जब सरकार ने भारत बायोटैक के टीके के ‘प्रतिकूल प्रभावों’ की खबर को छुपाया। भारत बायोटैक के क्लीनिकल ट्रायल के जुलाई में पहले चरण में एक प्रतिभागी को टीका लगाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। इसके बावजूद न तो ट्रायल रोके गए और न ही जनता को कुछ बताया गया। यह रवैया चौंकाने वाला और टीके की वैश्विक स्वीकार्यता में संदेह पैदा करने वाला है। अब इस मामले में सरकार, नियामक और कंपनी, सब चुप हैं।