चीन में 1962 जैसे हालात ! अपनी कमजोरी छुपाने के लिए लद्दाख मुद्दा भड़का रहा ड्रेगन

punjabkesari.in Wednesday, Sep 02, 2020 - 11:28 AM (IST)

बीजिंगः भारत और चीन के बीच सीमाओं को लेकर एक बार फिर तनाव का माहौल है। पूरी दुनिया जहां कोरोना महामारी से निपटने के प्रयास कर रही है वहीं चीन भारत के खिलाफ साजिशें रचने में लगा हुआ है। चीन का ईरादा नेपाल, पाकिस्तान की तरह भारत की जमीन हड़पने का भी है लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है । चीन की महत्वकांक्षाओं के चलते इसकी दुनिया के कई देशों से ठन चुकी है। दरअसल घरेलू स्तर पर औद्योगिक और खाद्य संकट से बुरी तरह घिरा हुआ चीन दुनिया का ध्यान अपने पर से हटाने के लिए जानबूझ कर लद्दाख मुद्दे को हवा दे रहा है । वह अपनी कमजोरी को आक्रामकता से ढकने की कोशिश में जुटा है।   चीन के आक्रामक रवैये के कारण ड्रेगन के अपने पड़ोसी देशों भारत के अलावा तीन महत्वपूर्ण खाद्य आपूर्तिकर्ताओं अमेरिका के अलावा आस्ट्रेलिया व कनाडा के साथ संबंधों में खटास आ चुकी है।  यही वजह है कि बीजिंग को गंभीर खाद्य संकट से गुजरना पड़ रहा है।  

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चीन से तनातनी को लेकर कुछ वक्त पहले ही भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि 1962 के बाद यह सबसे गंभीर स्थिति है। 1962 की स्थिति से तुलना करें तो उस समय भी ऐसी ही परिस्थितियां बनी थीं, जब चीन ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। यह बात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा चलाए जा रहे दो कार्यक्रमों से स्पष्ट हो जाती है। 1962 में चीन के नेता माओत्से तुंग को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ग्रेट लीप फॉरवर्ड कार्यक्रम का विरोध करने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर माओ ने शिकंजा कसा। उस वक्त माओ ने भारत को एक आसान लक्ष्य समझा। आज भी चीन समान परिस्थितियों से गुजर रहा है जहां खाद्य और औद्योगिक संकट उसके सामने हैं।

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बीते कुछ सप्ताह में दो अभियान शुरू किए हैं, जिनमें एक घरेलू खपत बढ़ाने से जुड़ा है तो दूसरा ‘क्लीन प्लेट ड्राइव’ है। घरेलू खपत बढ़ाने के अभियान से साफ है कि चीन की अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है। वहीं दूसरा अभियान बताता है कि देश खाद्य संकट से जूझ रहा है। अनुमान है कि 1962 के युद्ध के चलते 2-3 सालों में ही चीन में भूख से 4 से 5 करोड़ लोगों की मौत हो गई। माओ ने जिस तरह से अपने विचार का विरोध करने वालों को ‘शुद्ध’ किया, उसी तरह से शी जिनपिंग ने भ्रष्टाचार से लड़ाई के नाम पर अपने विरोधियों को निपटा दिया।

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स्वीडन के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ बर्टिल लिंटनर ने अपनी किताब चाइनीज इंडिया वार में लिखा है कि पार्टी के भीतर माओ की स्थिति से समझौता कर लिया गया और माओ ने उग्र राष्ट्रवाद को त्याग दिया। साथ ही चीनी राष्ट्रवाद को बढ़ाते हुए भारत को नरम लक्ष्य मानते हुए आक्रामक रुख अपनाया गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में औसत प्रति व्यक्ति खपत में करीब छह फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी खरीद के साथ ही कुल खुदरा बिक्री में 11.5 फीसद की गिरावट दर्ज है। शी जिनपिंग के लिए यह चिंताजनक है कि वह चीन विरोधी रुख को अपनी निर्यातोन्मुख अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती के रूप में देखते हैं। रिपोर्ट का कहना है कि एक औसत चीनी कम खर्च कर रहा है और रोजगार की स्थिति भी ठीक नहीं है।

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कुछ विशेषज्ञों का आरोप है कि शी जिनपिंग की गलत नीतियों के कारण शहरों में कमाई नहीं रह गई है, ऐसे में लोग शहरों से गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं। कोविड-19 संकट ने भी नौकरियों पर प्रभाव डाला है। मई में शी जिनपिंग ने चीनी सेना से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा था, लेकिन यह साफ नहीं है कि चीन किस देश के साथ युद्ध की तैयारी में जुटा है। चीन ने कमांडर-स्तरीय और कूटनीतिक वार्ता के वादों का भी सम्मान नहीं किया है। साथ ही भारत के साथ लगती सीमा के नजदीक निर्माण कार्यों में जुटा है।  


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Tanuja

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