ऑफ द रिकॉर्डः भारतीय सांझीदारों को हटाकर चीनी कंपनियों ने किया बाजार पर कब्जा

punjabkesari.in Wednesday, Jun 24, 2020 - 06:03 AM (IST)

नई दिल्लीः गलवान घाटी में चीन की काली करतूत के बाद भारत में चीनी उत्पादों का विरोध तीखा हो गया है लेकिन हकीकत इसके पूरी तरह विपरीत है। पूरी तरह से स्वदेशी स्मार्टफोन और टी.वी. सरीखे कई इलैक्ट्रॉनिक उत्पाद अभी भी दूर की कौड़ी हैं। 
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अमरीकन आईफोन हो, कोरियन सैमसंग या फिर भारतीय ब्रांड का माइक्रोमैक्स और लावा, घरेलू बाजार में बिकने वाला कोई भी फोन पूरी तरह मेड इन इंडिया होने का दावा नहीं कर सकता। हकीकत यह है कि मेक इन इंडिया की ब्रांडिंग के साथ बाजार में मौजूद दिग्गज ब्रांड के फोन चीन से आयात किए गए पार्ट्स से ही तैयार किए जा रहे हैं और आज शाओमी, ओप्पो, रीयलमी, वनप्लस, वीवो, हुआवेई, लेनेवो, मोटोरोला, टैक्नो और इन्फिनिक्स जैसे चाइनीज ब्रांड आज भारत के 72 प्रतिशत बाजार पर कब्जा जमा चुके हैं। 
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दरअसल 2013 के बाद कई चीनी कंपनियां भारतीय बाजार में दाखिल हुईं और माइक्रोमैक्स, लावा, इंटैक्स जैसे भारतीय ब्रांड की हिस्सेदारी पर कब्जा कर लिया। इससे पहले तक ये चीन से पार्ट्स मंगाकर या तो भारत में फोन बना रही थीं या फिर चीन से तैयार फोन आयात कर अपने ब्रांड के साथ घरेलू बाजार में बेच रही थीं, लेकिन 2013 के बाद भारतीय ब्रांड के लिए फोन बनाना बंद कर चीनी कंपनियां सीधे भारत में दाखिल हो गईं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण माइक्रोमैक्स है।
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2014 में यह भारतीय ब्रांड घरेलू बाजार की 18 प्रतिशत मांग चीन के उपकरण बेचकर पूरी कर रहा था लेकिन आज उसकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत रह गई है। वहीं उसके लिए उपकरण बनाने वाले टॉपवाइज ने उससे नाता तोड़ कोमियो नाम से भारत में अपना ब्रांड पेश कर दिया है।


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Pardeep

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