बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा, क्या आदिवासियों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया जा सकता है

punjabkesari.in Thursday, Jan 27, 2022 - 06:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क: बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि क्या राज्य की आदिवासी आबादी को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत रोजगार दिया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ 2007 में दायर उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनके जरिये महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण के कारण बड़ी संख्या में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली मांओं की मौत पर प्रकाश डाला गया है। राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणि ने अदालत को सूचित किया कि मेलघाट क्षेत्र के आदिवासियों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच उपलब्ध है, लेकिन मानसून के बाद जब वे अन्य क्षेत्रों में पलायन कर देते हैं, तब उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। 

कुंभकोणि ने कहा, ‘हमारा अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि क्षेत्र से पलायन नहीं हो। तब तक, सरकार का प्रयास उन क्षेत्रों में भी लाभ प्रदान करना होगा, जहां ये लोग पलायन के बाद प्रवास करते हैं।' इस पर खंडपीठ ने कहा कि अगर आदिवासियों को उन्हीं के गावों में रोजगार मुहैया कराया जाए तो उन्हें पलायन करने की जरूरत ही नहीं महसूस होगी। मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने पूछा, ‘क्या उन्हें मनरेगा के तहत रोजगार दिया जा सकता है? अगर सरकार पलायन रोकना चाहती है तो उसे रोजगार के स्रोत खोजने होंगे। यह सरकार की रणनीति का हिस्सा होना चाहिए।' याचिकाकर्ताओं में शामिल बंदू साणे ने अदालत को जानकारी दी कि अगस्त 2021 तक कुपोषण से मेलघाट क्षेत्र में हर महीने औसतन 40 बच्चों की मौत होती थी। 

उसने बताया कि नवंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच मौतों का आंकड़ा घटकर प्रतिमाह औसतन 20 पर आ गया। इस पर अदालत ने कहा कि क्षेत्र में कुपोषण से एक भी मौत नहीं हो, यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार कदम नहीं उठा रही है। खंडपीठ ने कुंभकोणि से यह भी जानना चाहा कि लोगों को गर्म खाना उपलब्ध कराने की योजना क्यों बंद कर दी गई। न्यायमूर्ति कर्णिक ने कहा, ‘यह बहुत परेशान करने वाली बात है। यह एक बुनियादी चीज है, जिसे सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए था।' कुंभकोणि ने खंडपीठ से कहा, ‘कोरोना वायरस के प्रसार को देखते हुए गर्म भोजन उपलब्ध कराने की योजना बंद कर दी गई थी। विकल्प के तौर पर सरकार राशन मुहैया करा रही थी।' उन्होंने भरोसा दिलाया कि यह योजना फरवरी में बहाल कर दी जाएगी। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 फरवरी की तारीख निर्धारित कर दी।


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Content Writer

Anil dev

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