किसानों से जुड़े बिल पर विरोध के बीच बीजेपी ने राज्यसभा सांसदों को जारी किया थ्री लाइन व्हिप

punjabkesari.in Saturday, Sep 19, 2020 - 08:59 PM (IST)

नेशनल डेस्क: देशभर में जारी किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच लोकसभा में कृषि से जुड़े तीनों बिल पास हो गये। अब ये बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी ने व्हिप जारी कर दिया है। 3 लाइन के इस व्हिप में भाजपा ने अपने सांसदों को सदन में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। 

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व्हिप के अनुसार सांसदों को सदन में उपस्थित रहना जरूरी होगा। इसका उल्लंघन करने वाले सांसद की सदस्यता तक जा सकती है। बता दें कि कृषि से जुड़े इन तीन अहम विधेयकों पर राजनीति गरमा गई है। पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक कई दल इसका विरोध कर रहे हैं. इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया है। 

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क्या होता है व्हिप
व्हिप का उल्लंघन दल बदल विरोधी अधिनियम के तहत माना जा सकता है और सदस्यता रद्द कर दी जा सकती है. व्हिप 3 तरह के होते हैं- एक लाइन का व्हिप, 2 लाइन का व्हिप और 3 लाइन का व्हिपं इन तीनों व्हिप में 3 लाइन का व्हिप अहम माना जाता है। इसे कठोर कहा जाता है। इसका इस्तेमाल सदन में अविश्वास प्रस्ताव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस या वोटिंग में किया जाता है। यदि किसी सदस्य ने इसका उल्लंघन किया तो उसकी सदस्यता खत्म होने का भी प्रावधान है।

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कृषि विधेयकों को लेकर संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार:-

  • कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020: प्रस्तावित कानून का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद अधिसूचित कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) यानी तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है।
  • इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है। इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई उपकर या शुल्क नहीं लिया जायेगा। 
  • फायदा: यह किसानों के लिये नये विकल्प उपलब्ध करायेगा। उनकी उपज बेचने पर आने वाली लागत को कम करेगा, उन्हें बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करेगा। इससे जहां ज्यादा उत्पादन हुआ है उन क्षेत्र के किसान कमी वाले दूसरे प्रदेशों में अपनी कृषि उपज बेचकर बेहतर दाम प्राप्त कर सकेंगे। 
  • विरोध: यदि किसान अपनी उपज को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा क्योंकि वे 'मंडी शुल्क' प्राप्त नहीं कर पायेंगे। यदि पूरा कृषि व्यापार मंडियों से बाहर चला जाता है, तो कमीशन एजेंट बेहाल होंगे। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है, किसानों और विपक्षी दलों को यह डर है कि इससे अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।

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vasudha

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