ऑफ द रिकॉर्डः हरियाणा के शरद पवार बनने की तैयारी में तो नहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा

punjabkesari.in Tuesday, Aug 25, 2020 - 05:59 AM (IST)

नई दिल्लीः कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को सी.डब्ल्यू. सी. की बैठक में वही तेवर दिखाए जो उन्होंने 21 साल पहले अपने विरोधियों को दिखाए थे। 1991 में शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था। इन नेताओं ने सरकार बनने की स्थिति में सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, इस मुद्दे पर सोनिया गांधी के विरुद्ध झंडा उठाया था। पवार सोनिया से लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे और पार्टी में विभाजन हो गया था। 
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शरद ने अपनी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी बना ली लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में पवार ने फिर सोनिया से हाथ मिला लिया। सोनिया गांधी ने पवार व अन्य नेताओं की इच्छा के आगे झुकते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया परंतु तब से अब तक हालात बहुत बदल गए हैं। 
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अब राहुल गांधी और प्रियंका राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं तथा सोनिया गांधी उन्हें सिर्फ इसलिए किनारे नहीं करने वाली कि 23 नेताओं ने पार्टी में ऊपर से नीचे तक आमूलचूल परिवर्तन के लिए चिट्ठी लिखने की हिम्मत की है। चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले 23 नेताओं (ये अधिक भी हो सकते हैं) में से केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही ऐसे नेता हैं जिनका भारी जनाधार है। 
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गुलाम नबी आजाद कई दशकों से जम्मू-कश्मीर से बाहर हैं और वह गठबंधन में मुख्यमंत्री का पद भेंट के रूप में पा गए थे। आजाद ने उस समय सोनिया से दूरी बना ली जब उन्हें राज्यसभा में पुन: निर्वाचित नहीं किया गया और वह अगली फरवरी में रिटायर होने वाले हैं। जब मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा लाए गए तो यह साफ हो गया था कि वह ही विपक्ष के नेता होंगे। इस कदम से आनंद शर्मा क्रुद्ध हैं क्योंकि वह आशा कर रहे थे कि उन्हें ही नेता विपक्ष बनाया जाएगा। ठीक इसी कारण से इन 2 नेताओं ने विरोध का झंडा उठाया है और अपने हाल के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार मान रहे हैं। जहां तक आनंद शर्मा की बात है तो उन्होंने कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और यदि वह कभी लड़ते भी तो जीत नहीं पाते।
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पृथ्वीराज चव्हाण भी कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं तथा अशोक चव्हाण से समस्या होने पर हाईकमान ने मुख्यमंत्री का पद उनकी झोली में डाल दिया था। वह इस बात से नाराज हैं कि उन्हें सी.डब्ल्यू.सी. का सदस्य नहीं बनाया गया, यहां तक कि स्थायी या विशेष आमंत्रित सदस्य तक भी नहीं बनाया गया जबकि अन्य मुख्यमंत्रियों को सदस्य तो बना ही दिया गया है।राज बब्बर, विवेक तनखा, जितिन प्रसाद, मुकुल वासनिक, वीरप्पा मोइली, पी.जे. कुरियन आदि वे नेता हैं जिनका कोई जनाधार नहीं है परंतु वे किसी बड़े नेता के बहकावे में आ गए और सोनिया को भेजी गई चिट्ठी पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। 

इस सबके बीच जो बात सबसे अधिक चौंकाने वाली है, वह है हुड्डा का इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर करना। उन्हें सोनिया से सब कुछ मिला और उन्होंने 10 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद संभाला। उनके बेटे को सी.डब्ल्यू.सी. का विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया, यहां तक कि कुमारी शैलजा को दरकिनार करके उन्हें राज्यसभा भेजा गया। हुड्डा के पास जनाधार है तथा वह बागियों का नेतृत्व कर सकते हैं। यह देखना होगा कि क्या वह हरियाणा के शरद पवार बनने की तैयारी में हैं?       


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Pardeep

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