बैलगाड़ी से चंद्रयान-2 तक ISRO के 50 साल, रॉकेट मैन सिवन को मिला ‘कलाम पुरस्कार'
punjabkesari.in Friday, Aug 16, 2019 - 04:24 PM (IST)
चेन्नईः गुरुवार को जहां देश ने अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया वहीं इसरो ने भी अपने 50 साल पूरे किए। इस साल इसरो की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही मिशन चंद्रयान-2 का सफलतापूर्वक लॉन्च। मिशन चंद्रयान-2 के सफल लॉन्च पर पूरे देश की ही नहीं विश्व की नजर है। यह साल इसरो के संस्थापक और भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के जनक माने जाने वाले विक्रम साराभाई की जन्मशती का भी वर्ष है। इस मौके पर तमिलनाडु सरकार ने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के चेयरमेन के. सिवन को ‘डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार' से नवाजा।
सरकार ने कहा कि हाल ही में चन्द्रयान-2 मिशन के सफल प्रक्षेपण का नेतृत्व करने वाले कैलासवादिवु सिवन ने अभी पुरस्कार हासिल नहीं किया है और वह बाद में मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी से पुरस्कार हासिल करेंगे। कलाम पुरस्कार से उन लोगों को सम्मानित किया जाता है जो वैज्ञानिक विकास, मानविकी और छात्रों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। तमिलनाडु के निवासियों को यह पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कार में आठ ग्राम का स्वर्ण पद और पांच लाख रुपए नकद दिया जाता है।
ISRO की उड़ान की कहानी पर एक नजर
15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की गई थी। तब इसका नाम 'अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति' (INCOSPAR) था। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा छोड़ा गया था। इसका नाम गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था। लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। 7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर जो 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। ISRO का सफर कभी थुंबा से शुरू हुआ था और आज बहुत आगे निकल गया है। 21 नवंबर 1963 को भारत का पहला रॉकेट केरल के थुंबा से छोड़ा गया था। 1977 में सैटेलाइट टेलिकम्यूनिकेशन एक्सपेरिमेंट प्रोजक्ट(STEP) शुरू हुआ जो टीवी को हर गांव तक लेकर गया। इसरो का फोकस शुरुआत में पृथ्वी का गहन अध्ययन और संचार सुविधाओं में सुधार था। विक्रम साराभाई ने अपने एक चर्चित भाषण में कहा था कि हम नागरिकों को चांद पर भेजने का सपना नहीं देख रहे हैं और न ही विभिन्न ग्रहों का अध्ययन हमारा ध्येय है।' यह भारतीय वैज्ञानिकों के महत्वाकांक्षी नहीं होने या निराशावादी होने की निशानी नहीं है। यह वैज्ञानिकों की भारत की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तय किए लक्ष्य थे।
आज दूसरे देशों की भी मदद कर रहा इसरो
एक वक्त ऐसा था कि इसरो अपनी ज्यादातर जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। उसे अपने सैटलाइट के निर्माण और उनके लॉन्च के लिए अन्य देशों निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। भारत अब अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के कई देशों की मदद कर रहा है। 15 फरवरी 2017 को इसरो ने 104 सैटलाइट एक साथ लॉन्च किया जो आज तक विश्व रेकॉर्ड है। इनमें से ज्यादातर सैटलाइट दूसरे देशों के थे। नासा के साथ हाल ही में इसरो ने सिंथेटिर अपरचर रडार (निसार) पर मिलकर काम करने के लिए करार किया है। इसमें इसरो और नासा बराबर की सहयोगी हैं। इतना ही नहीं जापान के साथ चंद्रमा और मंगल के मिशन में भी इसरो और नासा मिलकर काम करने वाले हैं।