ट्रेन में बैठने की उम्मीद टूटी, 1000Km का सफर तय कर 8 दिन में बिहार पहुंचे 11 रिक्शा वाले

punjabkesari.in Wednesday, May 27, 2020 - 03:07 PM (IST)

नेशनल डेस्कः लॉकडाउन ने सारे सपने धूल में मिला दिए, शहरों में काम-धंधा ठप्प हो गया। ट्रेन में सीट मिलने की कोई उम्मीद न होने पर टूटे दिल से 11 लोगों ने अपने साइकिल रिक्शा पर सामान लादा और निकल लिए अपने गांव की ओर। इन 11 रिक्शेवालों ने आठ दिन में गुरुग्राम से बिहार तक का सफर तय किया। पुलिस को धता बताते हुए और कई बार भूखे पेट पैडल मारते हुए 1,000 किमी से भी लंबा सफर तय करके अपने घर पहुंचे। चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए इन लोगों ने रात का सफर किया और ऐसे रास्तों को चुना जहां भोजन मिल सके या पंक्चर ठीक करने की व्यवस्था हो जाए, अंतत: रविवार को वे सभी मुजफ्फरपुर जिले में अपने गांव बांगड़ा पहुंच गए। इन सभी रिक्शाचालकों ने यह उम्मीद छोड़ दी थी कि श्रमिक विशेष ट्रेनों में उन्हें सीट मिल पाएगी और वे घर पहुंच सकेंगे।

 

इन 11 रिक्शा चालकों में से एक भरत कुमार ने बांगड़ा ने बताया कि 25 मार्च को लॉकडाउन शुरू होने के बाद से हमारे पास कोई काम नहीं था और पैसा भी खत्म हो गया था। हमने सोचा कि बोरिया बिस्तर समेट कर अपने गांव के लिए निकलने का वक्त आ गया है। तनाव बढ़ रहा था- दो महीनों से कोई काम नहीं था, जबकि घर पर परिवार को पैसों का इंतजार था, गुरुग्राम में मकान मालिक किराया मांग रहे थे और लॉकडाउन कब खत्म होगा नहीं जानते।

 

भरत कुमार ने भी अन्य लोगों की तरह श्रमिक विशेष ट्रेन से सफर के लिए पंजीकरण कराया था। हर दिन सिर्फ उसके मकान मालिक का फोन आता जो यह पूछता था कि वह बकाया किराया कब देगा। इंतजार से आजिज आकर गुरुग्राम रेलवे स्टेशन जाने का फैसला किया लेकिन उसे स्टेशन में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई। उसने वहां पाया कि उस जैसे और भी लोग हैं जो वहां अपने टिकट की स्थिति जानने के लिये पहुंचे हैं। उनमें से 11 एक साथ आए और फिर साइकिल रिक्शा पर 1090 किलोमीटर का लंबा सफर शुरू हुआ। इस सफर में उन्हें आठ दिन का वक्त लगा। भरत ने कहा कि नहीं पता कि मैं यहां (बिहार में) कैसे कमाई करूंगा, लेकिन यह है कि कम से कम मैं अपने परिवार के साथ हूं और निकाले जाने का खतरा नहीं रहेगा। लंबी यात्रा के बाद मैं कमजोरी महसूस कर रहा हूं। मैं एक दो दिन में पता लगाऊंगा कि मैं अपने राज्य में क्या काम कर सकता हूं।

 

भरत के जैसे ही उसके साथियों की भी यही कहानी है। उन लोगों ने कहा कि हम गुरुग्राम में अपना रिक्शा नहीं छोड़ सकते थे। यह हमारी सबसे महंगी संपत्ति है। हम नहीं जानते थे कि हम वापस कब लौटेंगे इसलिए हमने अपना सारा सामान रिक्शे पर बांधकर चलने की सोची। इन लोगों ने कहा कि भले ही यात्रा लंबी और मुश्किल ली लेकिन हमारा घर वापिसी का फैसला सही था कब तक सब ठीक होने का इंतजार करते। कोरोना के कारण देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लगा हुआ है और उसका चौथा चरण 31 मई को खत्म होगा। लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं, जिससे कई लोग बेघर हो गए, कई की जमापूंजी खत्म हो गई। इसके चलते प्रवासी कामगारों हर संभव साधन से अपने-अपने घर के लिए निकल पड़े।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Seema Sharma

Recommended News

Related News