देश में 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 6 लाख आवासीय इकाइयों के निर्माण में देरी: रिपोर्ट
punjabkesari.in Monday, Aug 02, 2021 - 04:39 PM (IST)
मुंबई, दो अगस्त (भाषा) देश में 2021 के मध्य में सात शहरों में 5 लाख करोड़ रुपये मूल्य से अधिक की छह लाख मकानों के निर्माण कार्य अटक गये या फिर उसमें देरी हुई है। जमीन, मकान के बारे में परामर्श देने वाली कंपनी ने सोमवार को एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
एनरॉक प्रोपर्टी कंसल्टेंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन इकाइयों के सात शहरों में परियोजनाएं हैं। ये परियोजनाएं 2014 या उससे पहले शुरू की गयी थी।
रिपोर्ट के अनुसार 1.40 लाख करोड़ रुपये की 1.74 लाख मकान पूरी तरह से अटके पड़े हैं और इनमें से दो तिहाई इकाइयों की कीमत 80 लाख रुपये से कम है।
इसमें कहा गया है कि सरकार की सस्ते और मध्यम आय की श्रेणी वाले मकानों के लिये कोष की विशेष सुविधा (एसडब्ल्यूएएमआईएच) से कई परियोजनाओं को राहत मिली लेकिन यह साफ नहीं है कि इस योजना से वास्तव में कितनी मदद मिली।
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-दिल्ली (एनसीआर) में सर्वाधिक आवासीय परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। इनमें 1.13 लाख मकान फंसे पड़े हैं, जिनका मूल्य 86,463 करोड़ रुपये है। उसके बाद मुंबई महानगर क्षेत्र में 42,417 करोड़ रुपये मूल्य के 41,730 मकान अटके पड़े हैं।
फंसी पड़ी परियोजनाओं के मामले में एनसीआर अब आगे हैं। इस क्षेत्र में 6 लाख से अधिक इकाइयों में से 52 प्रतिशत फंसे पड़े हैं या उन्हें पूरा करने में देरी हुई हैं। इनका कुल मूल्य 2.49 लाख करोड़ रुपये है। वहीं मुंबई महानगर क्षेत्र में 1.52 लाख करोड़ रुपये की 28 प्रतिशत मकान अटके पड़े हैं।
अटकी पड़ी या देरी वाली परियोजनाओं की सूची में पुणे में 29,390 करोड़ रुपये की 8 प्रतिशत जबकि कोलकाता में 17,960 करोड़ रुपये के 5 प्रतिशत मकान अटके पड़े हैं।
रिपोर्ट के अनुसार दक्षिणी राज्यों के शहरों में ज्यादातर आवासीय परियोजनाएं पटरी पर हैं।
हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु का फंसी पड़ी परियोजनाओं में योगदान केवल 11 प्रतिशत है।
एनरॉक प्रोपर्टी कंसल्टेंट के अनुसंधान मामलों के प्रमुख प्रशांत ठाकुर ने कहा कि देरी या अटकी परियोजनाओं की संख्या में एनसीआर की हिस्सेदारी 2021 के मध्य में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई, जबकि पिछले बार के अध्ययन में 2019 के अंत तक यह 35 प्रतिशत थी।
उन्होंने कहा कि एनसीआर में अटकी पड़ी परियोजनाओं में वृद्धि का कारण कानूनी विवाद, कोविड-19 महामारी और वित्त पोषण से जुड़े मुद्दे हो सकते हैं। इसी अवधि में पुणे और मुंबई महानगर क्षेत्र में में ऐसी इकाइयों की कमी महत्वपूर्ण है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
एनरॉक प्रोपर्टी कंसल्टेंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन इकाइयों के सात शहरों में परियोजनाएं हैं। ये परियोजनाएं 2014 या उससे पहले शुरू की गयी थी।
रिपोर्ट के अनुसार 1.40 लाख करोड़ रुपये की 1.74 लाख मकान पूरी तरह से अटके पड़े हैं और इनमें से दो तिहाई इकाइयों की कीमत 80 लाख रुपये से कम है।
इसमें कहा गया है कि सरकार की सस्ते और मध्यम आय की श्रेणी वाले मकानों के लिये कोष की विशेष सुविधा (एसडब्ल्यूएएमआईएच) से कई परियोजनाओं को राहत मिली लेकिन यह साफ नहीं है कि इस योजना से वास्तव में कितनी मदद मिली।
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-दिल्ली (एनसीआर) में सर्वाधिक आवासीय परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। इनमें 1.13 लाख मकान फंसे पड़े हैं, जिनका मूल्य 86,463 करोड़ रुपये है। उसके बाद मुंबई महानगर क्षेत्र में 42,417 करोड़ रुपये मूल्य के 41,730 मकान अटके पड़े हैं।
फंसी पड़ी परियोजनाओं के मामले में एनसीआर अब आगे हैं। इस क्षेत्र में 6 लाख से अधिक इकाइयों में से 52 प्रतिशत फंसे पड़े हैं या उन्हें पूरा करने में देरी हुई हैं। इनका कुल मूल्य 2.49 लाख करोड़ रुपये है। वहीं मुंबई महानगर क्षेत्र में 1.52 लाख करोड़ रुपये की 28 प्रतिशत मकान अटके पड़े हैं।
अटकी पड़ी या देरी वाली परियोजनाओं की सूची में पुणे में 29,390 करोड़ रुपये की 8 प्रतिशत जबकि कोलकाता में 17,960 करोड़ रुपये के 5 प्रतिशत मकान अटके पड़े हैं।
रिपोर्ट के अनुसार दक्षिणी राज्यों के शहरों में ज्यादातर आवासीय परियोजनाएं पटरी पर हैं।
हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु का फंसी पड़ी परियोजनाओं में योगदान केवल 11 प्रतिशत है।
एनरॉक प्रोपर्टी कंसल्टेंट के अनुसंधान मामलों के प्रमुख प्रशांत ठाकुर ने कहा कि देरी या अटकी परियोजनाओं की संख्या में एनसीआर की हिस्सेदारी 2021 के मध्य में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई, जबकि पिछले बार के अध्ययन में 2019 के अंत तक यह 35 प्रतिशत थी।
उन्होंने कहा कि एनसीआर में अटकी पड़ी परियोजनाओं में वृद्धि का कारण कानूनी विवाद, कोविड-19 महामारी और वित्त पोषण से जुड़े मुद्दे हो सकते हैं। इसी अवधि में पुणे और मुंबई महानगर क्षेत्र में में ऐसी इकाइयों की कमी महत्वपूर्ण है।
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