आनुवंशिक बदलाव से खाद्य उत्पादन में वृद्धि हो सकती है: अनुसंधान
punjabkesari.in Saturday, Jul 31, 2021 - 10:04 PM (IST)
मुंबई, 31 जुलाई (भाषा) एक आनुवंशिक बदलाव के जरिये राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को लक्षित करते हुए चावल और आलू की फसलों की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है और इसके माध्यम से सूखे को सहने की क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है, जो भारत सहित विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा की समस्या को संबोधित करने में मदद कर सकता है। एक शोध में यह जानकारी दी गई है।
शिकागो विश्वविद्यालय, पेकिंग विश्वविद्यालय और गुइझोऊ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट में कहा कि चावल और आलू दोनों के पौधों में एफटीओ नामक प्रोटीन के लिए जीन एन्कोडिंग को जोड़ने से उनकी उपज में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चुआन हे ने कहा, ‘‘इससे होने वाले बदलाव वास्तव में नाटकीय है। इसके अलावा, इसने लगभग हर प्रकार के पौधे के साथ उचित परिणाम दिया है जिन्हें हमने अब तक आजमाया है, और यह एक बहुत ही मामूली बदलाव किये जाने से होता है।’’ प्रोफेसर चुआन हे ने पेकिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गुईफांग जिया के साथ शोध की अगुवाई की थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से दुनिया भर में हुए जलवायु परिवर्तन और फसल प्रणालियों पर अन्य दबावों मद्देनजर, अन्य प्रमुख विशेषज्ञों के साथ-साथ शोधकर्ता इस सफलता की संभावना के बारे में आशान्वित हैं।
वैश्विक गरीबी को कम करने के संबंध में किये गये काम को लेकर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किये गये, माइकल क्रेमर, जो शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही रोमांचक तकनीक है और संभावित रूप से वैश्विक स्तर पर गरीबी और खाद्य असुरक्षा की समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकती है और यह संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी उपयोगी हो सकती है।’’
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
शिकागो विश्वविद्यालय, पेकिंग विश्वविद्यालय और गुइझोऊ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट में कहा कि चावल और आलू दोनों के पौधों में एफटीओ नामक प्रोटीन के लिए जीन एन्कोडिंग को जोड़ने से उनकी उपज में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चुआन हे ने कहा, ‘‘इससे होने वाले बदलाव वास्तव में नाटकीय है। इसके अलावा, इसने लगभग हर प्रकार के पौधे के साथ उचित परिणाम दिया है जिन्हें हमने अब तक आजमाया है, और यह एक बहुत ही मामूली बदलाव किये जाने से होता है।’’ प्रोफेसर चुआन हे ने पेकिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गुईफांग जिया के साथ शोध की अगुवाई की थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से दुनिया भर में हुए जलवायु परिवर्तन और फसल प्रणालियों पर अन्य दबावों मद्देनजर, अन्य प्रमुख विशेषज्ञों के साथ-साथ शोधकर्ता इस सफलता की संभावना के बारे में आशान्वित हैं।
वैश्विक गरीबी को कम करने के संबंध में किये गये काम को लेकर नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किये गये, माइकल क्रेमर, जो शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही रोमांचक तकनीक है और संभावित रूप से वैश्विक स्तर पर गरीबी और खाद्य असुरक्षा की समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकती है और यह संभावित रूप से जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी उपयोगी हो सकती है।’’
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।