कोविड खर्च, ईंधन के दाम बढ़ने, आनलाइन डिलीवरी से महंगाई बढ़ेगी, मांग प्रभावित होगी : रिपोर्ट

punjabkesari.in Monday, May 17, 2021 - 10:55 PM (IST)

मुंबई, 17 मई (भाषा) स्वास्थ्य खर्चे में तेज वृद्धि, ईंधन के बढ़ते दाम और वस्तुओं की आनलाइन डिलिवरी से जहां एक तरफ मुद्रास्फीति पर काफी दबाव पड़ेगा वहीं दूसरी तरफ दूसरी तरफ उपभोक्ताओं की दूसरी तरह की मांग की क्षमता कम होगी। इससे वृद्धि की संभावनाएं प्रभावित होंगी, क्योंकि आर्थिक वृद्धि अभी भी खपत आधारित मांग पर निर्भर है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में समूह की प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष ने एक नोट में यह भी कहा है कि अप्रैल माह के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति के मार्च के 5.52 प्रतिशत से घटकर 4.29 प्रतिशत रहना भ्रमित करने वाला है। केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुद्रास्फीति के आंकड़े प्राथमिक तौर पर खाद्य वस्तुओं के नरम पड़ते दाम की वजह से है जबकि इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र संबंधी मूल मुद्रास्फीति बढ़कर 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गई।
महामारी के पूरे देश में फैलने के साथ हमें मुख्य मुद्रास्फीति के आंकड़ों से आगे देखने की जरूरत है। ग्रामीण मूल मुद्रास्फीति अप्रैल माह में बढ़कर 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गई और यह मई में और बढ़ सकती है। महामारी के कारण स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च का ग्रामीण इलाकों में अर्थपरक प्रभाव होगा।
खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में शामिल स्वास्थ्य क्षेत्र की वस्तुवार मुद्रास्फीति पर यदि गौर किया जाये तो गैर- संस्थागत दवाओं, एक्स-रे, ईसीजी, नैदानिक परीक्षण आदि की मुद्रास्फीति माह-दर- माह बढ़ती जा रही है। उदाहरण के तौर पर समग्र खुदरा मूल्य सूचकांक अप्रैल में कम हुआ है, इस दौरान खाद्य सीपीआई में गिरावट आई है लेकिन जब खाद्य वस्तुओं की महंगाई की समग्र सीपीआई से तुलना की जाती है तो खाद्य सीपीआई में जो गिरावट दिखती है वास्तव में यह उतनी तेज नहीं है। इसी प्रकार ईंधन और स्वास्थ्य के मामले में मुद्रास्फीति की वृद्धि अधिकतम है लेकिन मजे की बात यह है कि मूल सीपीआई कि 0.57 प्रतिशत घटा है जबकि संबंधित वर्ग में यह 18 अंक बढ़ा है।
घोष के मुताबिक मूल्य दबाव का आकलन करने के लिये तीन अहम बिंदु हैं। इनमें स्वास्थ्य, ईंधन मूल्य और उपभोक्ता जिंसों के बढ़ते दाम शामिल हैं। महामारी के चलते स्वास्थ्य खर्च जो कि समग्र मुद्रास्फीति में इस समय पांच प्रतिशत है वह आगे 11 प्रतिशत पर पहुंच सकता है।
इस स्थिति का दूसरे उपभोकता सामानों की खपत पर असर पड़ सकता है। कुल मिलाकर दूसरे सामानों की खपत में कटौती हो सकती है। वहीं ईंधन के बढ़ते दाम का भी स्वास्थ्य व्यय को छोड़कर अन्य खपतों पर प्रभाव पड़ सकता है।
घोष के मुताबिक ऐसी स्थिति से बाहर निकलने का यही रास्ता है कि पेट्रोल, डीजल पर कर दरों को तर्कसंगत बनाकर इनके दाम में कटौती की जाये। अन्यथा विवेक से होने वाला व्यय पीछे धकेला जाता रहेगा और गैर-विवेकाधीन व्यय बढ़ता रहेगा। दूसरी तरफ आनलाइन डिलीवरी प्लेटफार्म का इसतेमाल बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय आनलाइन कीमतों को संज्ञान में नहीं लेता है यदि वह आनलाइन मूल्यों पर भी विचार करे तो खुदरा मुद्रास्फीति पर 10 से 15 आधार अंक का प्रभाव पड़ सकता है।


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PTI News Agency

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