मेरे पिता ने बॉलीवुड में भी अभिनय के स्तर को उठाने में अपना जीवन समर्पित कर दिया: बाबिल खान

punjabkesari.in Wednesday, Jul 08, 2020 - 09:27 PM (IST)

मुंबई, आठ जुलाई (भाषा) दिवंगत अभिनेता इरफान खान के बेटे बाबिल का कहना है कि उन्हें सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर हो रही राजनीतिक बहस पसंद नहीं है लेकिन अब सिनेमा जगत में उस बदलाव की उम्मीद दिख रही है जिसके लिए उनके पिता जीवन भर लड़ते रहे।

बाबिल ने कहा कि उनके पिता हिन्दी फिल्म जगत की प्रकृति को बदलने की लगातार कोशिश करते रहे लेकिन हर बार वे बॉक्स ऑफिस पर सिक्स पैक एब्स वाले अभिनेताओं के रटे हुए संवादों वाली फिल्मों से हार जाते थे।

एक दुर्लभ प्रकार के कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद इरफान ने 54 वर्ष की आयु में 29 अप्रैल को अंतिम सांस ली।

अपने पिता के संघर्षों को याद करते हुए बाबिल ने इंस्टाग्राम पर एक लंबा नोट लिखा, “ मेरे पिता ने अपना पूरा जीवन बॉलीवुड में अभिनय की कला का स्तर ऊंचा करने में लगा लिया लेकिन हर बार वे बॉक्स ऑफिस पर सिक्स पैक एब्स वाले अभिनेताओं के रटे हुए संवादों और भौतिक विज्ञान और वास्तविकता को नकारती फिल्मों से हार जाते थे।”
उन्होंने लिखा, “फोटोशॉप किए हुए आइटम सांग, सीधे लिंगभेद और रुढ़िवादी पितृसत्ता का प्रस्तुतीकरण ही बॉलीवुड की प्रकृति बन चुका है(आपको यह समझने की जरुरत है कि बॉक्स ऑफिस पर हारने का मतलब है कि बॉलीवुड में निवेश का बड़ा हिस्सा जीतने वाले के पास जाएगा... और इस तरह हम एक बहुत ही बुरे चक्र में फंस जाते हैं।)”
सिनेमा के छात्र बाबिल ने कहा कि मुख्यधारा की फिल्में इस लिए सफल होती हैं क्योंकि दर्शकों को केवल मनोरंजन करने वाली फिल्में ही चाहिए।

उन्होंने कहा, “हमने हमेशा से मनोरंजन पर ही ध्यान दिया और अपनी सुरक्षा की सोचकर हम वास्तविकता के नाजुक भ्रम को तोड़ने से इतना डरते हैं कि अपने नजरिये में बदलाव नहीं ला पाते।”
लंदन में फिल्म स्कूल जाने से पहले के दिनों को याद करते हुए, बाबिल ने कहा कि उनके पिता ने उन्हें चेतावनी दी थी कि उन्हें वहां खुद को साबित करना होगा क्योंकि विश्व सिनेमा में बॉलीवुड को शायद ही सम्मान मिलता है।

उन्होंने कहा कि इरफान ने उन्हें भारतीय सिनेमा के बारे में दूसरों को बताने के लिए कहा था क्योंकि यह काम मौजूदा बॉलीवुड की की क्षमता से परे है।

बाबिल ने कहा कि उनके फिल्म स्कूल में उन्हें पता चला कि बॉलीवुड को सम्मान नहीं मिलता है और लोग 1960 और 1990 के भारतीय सिनेमा से अनभिज्ञ हैं।

उन्होंने लिखा, “विश्व सिनेमा के वर्ग में भारतीय सिनेमा के बारे में ''बॉलीवुड एंड बियॉन्ड'' नाम का सिर्फ एक वक्तव्य था। वो भी शोर-शराबे वाली क्लास में निकल गया। यहां तक कि सत्यजीत रे और के.आसिफ के वास्तविक भारतीय सिनेमा के बारे में ढंग की चर्चा करना भी वहां कठिन था। आप जानते हैं ऐसा क्यों है? क्योंकि हम, भारतीय दर्शकों के रूप में विकसित होना ही नहीं चाहते।”
बाबिल ने कहा कि उन्हें आज हवाओं में बदलाव की एक खूश्बू महसूस हो रही है जैसे नई पीढ़ी अर्थ की तलाश कर रही हो।

सुशांत की मौत के बाद हो रही बहसों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वे आशा करते हैं कि इससे कुछ सकारात्मक बदलाव होंगे।

उन्होंने लिखा, “हमें मजबूती से खड़े रहना होगा, इस बार अर्थ ढूंढने की यह प्यास पूरी हुए बिना दबनी नहीं चाहिए...हालांकि मैं सुशांत की मौत को लेकर हो रही राजनीति का पक्षधर नहीं हूं लेकिन इससे अगर को सकारात्मक बदलाव होता है तो हम उसका स्वागत करेंगे।”


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PTI News Agency

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