बंबई उच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दो प्राथमिकी निलंबित की

punjabkesari.in Tuesday, Jun 30, 2020 - 06:28 PM (IST)

मुंबई, 30 जून (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ टिप्पणी करने के मामले में दायर दो प्राथमिकी को निलंबित कर दिया।

अदालत ने कहा कि प्राथमिक तौर पर गोस्वामी के खिलाफ कोई अपराध नही बनता है।
पालघर में पीट-पीटकर हत्या के मामले में और लॉकडाउन के दौरान बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जमा होने के संबंध में कथित उकसावे और भड़काऊ टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ यह प्राथमिकियां दर्ज करायी गयी थीं।

न्यायमूर्ति उज्जल भूयां और न्यायमूर्ति रियाज चागला की एक खंड पीठ ने पाया कि गोस्वामी की टिप्पणियों ने कांग्रेस और इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधा लेकिन उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया जिसके कारण सार्वजनिक सौहार्द बिगड़े अथवा विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच हिंसा भड़के।

उच्चतम न्यायालय की ओर से की गई टिप्पणियों का हवाला देते हुए पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जब न्यूज मीडिया किसी एक अवस्था में जकड़ा हुआ हो तो नागरिक स्वतंत्रता नहीं रह सकती। पूर्व में उच्च्तम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि भारत की आजादी तब तक सुरक्षित रहेगी जब तक पत्रकार प्रतिशोध के खतरे के बिना सत्ता से बात कर सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा, '''' हमारे गणतंत्र के 70 वर्षोँ में हम इतना अधिक जोखिम भी नहीं देख सकते कि मात्र एक पूजा स्थल का जिक्र करने भर से ही धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी अथवा घृणा पैदा हो जाएगी और जिसके कारण सड़कों पर उथल-पुथल और टकराव शुरू हो जाएगा।''''
दो प्राथमिकी रद्द करने की गुहार लगाने वाली गोस्वामी की याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि याचिका के निपटारे तक बलपूर्वक कोई कार्रवाई नहीं करे।

गोस्वामी के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की गई थीं, जिनमें एक नागपुर में दर्ज की गई थी, जिसे बाद में उच्च्तम न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक मुंबई के एनएम जोशी मार्ग पुलिस थाने में स्थानांतरित किया गया था जबकि एक अन्य प्राथमिकी यहां पायधुनी पुलिस थाने में दर्ज की गई थी।

गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे और मिलिंद साठे ने आरोप लगाया था कि देश भर में गोस्वामी पर एक के बाद एक दर्ज की गई प्राथमिकी के पीछे कांग्रेस थी।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल और राजा ठाकरे ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि एक पत्रकार के पास अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है लेकिन यह घोषित करने का नहीं कि एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह किसी विशेष धर्म से ताल्लुक रखता था।


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PTI News Agency

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