न तेल, न घी बल्कि नदी के पानी से जलता है मां के इस मंदिर का दीया
punjabkesari.in Wednesday, Nov 27, 2019 - 03:31 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
भारत एक ऐसा देश है जहां लोगों में अपने-अपने धर्म को लेकर असीम आस्था है। इसी आस्था के यहां कई रंग भी देखने को मिल जाते हैं। इन्हीं में से एक अनोखा रंग वाले या कहें अद्भुत चमत्कारी मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। जी हां, जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं ये मंदिर कालीसिंध नदी के किनारे आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किमी दूर गाड़िया गांव के पास स्थित है, जो अपने चमत्कारी रहस्य के चलते भारत के साथ-साथ अन्य कई देशों में प्रसिद्ध है। इससे पहले कि आप सोचने लगे कि आख़िर यहां ऐसा क्या चमत्कार होता होगा तो चलिए शुरू करते हैं यहां होने वाले चमत्कार का किस्सा।
यकीनन हम सब में लगभग लोग अपने जीवन में देश के कई रहस्यमयी व भव्य मंदिरों में गए होंगे जिनके रहस्य व अद्भुत किस्से हैरान कर देने वाले होंगे। परंतु हम दावे के साथ कह सकते हैं आप में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने ऐसा मंदिर देखा होगा जहां पानी के दीए जलाए जाते होंगे। जी हां, हम जानते हैं ये सुनने के बाद आप के दिमाग में सबसे पहले बात यही आई होगी कि पानी के दीए तरते तो देखें हैं परंतु पानी के साथ जलने वाले दीए। तो आपको बता दें कि मध्यप्रदेश के गड़ियाघाट माता जी के मंदिर में आपको इसका साक्षात सबूत मिल सकता है।
दरअसल कालीसिंध नदी के किनारे के पास स्थित गड़ियाघाट माता जी के मंदिर माता की ज्योति घी से नहीं बल्कि पानी से जलती है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर में पहले हमेशा तेल का दीपक जला करता था। परंतु पिछले कुछ वर्ष पहले यहां माता ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि अब से तुम पानी का दीपक जलाओ। जिसके बाद पानी से दीपक जलाया तो वो जल उठा। कहा जाता है तब से मां के चमत्कार से यह दीपक ज्यों का त्यों जल रहा है। मंदिर में पूजा करने वाले पुजारियों द्वारा बताई गई इन बातों के बात आप समझ ही गए होंगे की वाकई भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जहां आज भी माता की शक्ति देखने को मिलती है।
बताया जाता है माता के मंदिर में इस दीपक को जलाने के लिए पानी कालीसिंध नदी से लाया जाता है। यह दीपक सिर्फ़ बरसात के मौसम में नहीं जलता क्योंकि कालीसिंध नदी में जल का स्तर बढ़ जाने के कारण ये मंदिर पानी में डूब जाता है, जिसकी वजह से दीपक बंद हो जाता है। इसके बाद ज्योत को पुनः शारदीय नवरात्र के पहले दिन जला दिया जाता है, जो कि अगली बारिश तक जलता रहता है। अपनी इसी विशेषता को लेकर यह मंदिर अपनी बहुत प्रसिद्ध हो चुका है।