J&K: अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के वक्त सद्भावना व सौहार्द की मिसाल बनी थी घाटी

punjabkesari.in Sunday, Nov 10, 2019 - 12:30 PM (IST)

श्रीनगर: 27 वर्ष पूर्व अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के वक्त जब पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और अंहिसा का माहौल था तो घाटी पूरी तरह शांत रही। कोई हड़ताल नहीं थी, सिर्फ उत्तरी कश्मीर में एल.ओ.सी. के साथ सटे एक छोटे से गांव में स्थानीय लोगों ने शांतिपूर्ण बंद रखा था। उस समय घाटी में धर्मांध जेहादियों का आतंक अपने चरम पर था। उन्होंने लोगों को हर जगह उकसाने का प्रयास किया, लेकिन कश्मीरी मुस्लिमों ने उनके मंसूबों को पूरा करने की बजाय संयम व शांति बनाए रखी।

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गौरतलब है कि आज अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला रामलला के पक्ष में आ गया है। इसे देखते हुए पूरे देश में पहले से ही किसी भी अप्रिय घटना से निपटने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया गया है।  

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अयोध्या में जब ढांचा गिरा था तब यहां सब कुछ सामान्य था
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और दुनिया के किसी भी कोने में मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी घटना पर यहां बवाल हो जाता है, लेकिन अयोध्या में जब ढांचा गिरा था तो यहां सब कुछ सामान्य रहा। उस समय कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था। आतंकियों और उनके समर्थकों ने हालात बिगाडने की हर साजिश की थी, लेकिन आम लोगों ने उनकी एक नहीं चलने दी। उस समय श्रीनगर सहित वादी के सभी प्रमुख शहरों व कस्बों में स्थिति लगभग सामान्य रही। सिर्फ उत्तरी कश्मीर में एल.ओ.सी. के साथ सटे दावर इलाके में स्थानीय लोगों ने हड़ताल की थी।

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कई राष्ट्र विरोधी ताकतों ने भड़काने का प्रयास किया, लेकिन कामयाब नहीं हुए
सामाजिक कार्यकर्ता संजीव कुमार ने कहा कि मैं उस समय करीब 17 साल का था। उस समय केबल टी.वी. का दौर था। यह नहीं कह सकते थे कि यहां लोग नाराज नहीं थे, लेकिन सभी शांत रहे। मुझे याद है कि कुछ लोगों ने ढांचा गिराए जाने के वक्त और उसके अगले दिन शहर के कुछ हिस्सों में भाषण देकर इस घटना को हिंदुस्तान में मुस्लिमों पर जुल्म का नाम देकर हम कश्मीरी मुस्लिमों को बंदूक और जेहाद का पाठ पढ़ाने का प्रयास किया था। खैर, किसी ने उनकी नहीं सुनी व किसी ने कोई जलूस नहीं निकाला और सब अपने काम में लगे रहे। जहां तक मैं जानता हूं और समझता हूं कि आम कश्मीरी मुस्लिम किसी भी तरह से सांप्रदायिक नहीं हैं। वे इस घटना पर अंहिसा का हिस्सा बन कर किसी भी तरह से कश्मीरियत की अपनी परंपरा और इस्लाम के बुनियादी उसूलों से दूर नहीं जाना चाहते थे। आज भी यही स्थिति है।


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Author

rajesh kumar

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