म्यांमार और नेपाल के लिए संकट भरा रहा साल 2021, बदल गए सत्ता के समीकरण

punjabkesari.in Monday, Dec 27, 2021 - 01:40 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः साल 2021 म्यांमार और नेपाल के लिए काफी सियासी उथल पुथल व संकट से भरा रहा। इसी साल म्यांमार में एक फरवरी को सेना म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां की पुलिस ने नेता आंग सान सू ची पर कई आरोप लगाए। पुलिस के दस्तावेजों के अनुसार उन्हें 15 फरवरी तक के लिए कस्टडी में भेज दिया गया। आंग सान सू ची पर आयात निर्यात के नियमों के उल्लंघन करने और गैर कानूनी ढंग से दूरसंचार यंत्र रखने के आरोप लगाए गए थे। राजधानी नेपीडाव में उनके घर में बंद रखा गया था।

 

अपदस्त राष्ट्रपति विन मिन पर भी कई आरोप लगाए गए थे। उन पर कोरोना महामारी के दौरान लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाने के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। उन्हें भी दो सप्ताह के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा गया था।  एक फरवरी को सेना के सत्ता अपने हाथों में लेने के बाद से न तो सू ची की तरफ से और न ही राष्ट्रपति विन मिन की तरफ से कोई बयान आया और न ही उन्हें सार्वजनिक तौर पर कहीं देखा गया। तख्तापलट की अनुवाई करने वाले सेना के जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने देश में एक साल का आपातकाल लगा दिया था। इस दौरान देश का कामकाज देखने के लिए ग्यारह सदस्यों की एक सैन्य सरकार चुनी गई है।

 

सेना ने तख्तापलट को ये कहते हुए सही ठहराया है कि बीते साल हुए चुनावों में धांधली हुई थी। इन चुनावों में आंग सान सू ची का पार्टी नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी ने एकतरफा जीत हासिल की। कोर्ट के समक्ष पेश रिपोर्ट के अनुसार सू ची ने गैर कानूनी तरीके से वाकी-टाकी जैसे दूरसंचार यंत्रों का आयात करने का आरोप है। नेपीडाव में उनके घर पुलिस को ये यंत्र मिले हैं। विन मिन पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के तहत आरोप लगाए गए थे। उन पर कोरोना महामारी के दौरान लगाई गई पाबंदियों का उल्लंघन कर 220 गाड़ियों के काफ‍िले के साथ अपने समर्थकों से मिलने जाने का आरोप था।

 

गौरतलब है कि तीन दशकों में म्यांमार की सेना ने लगातार कोशिश की कि वह सू ची के कारण पैदा हुए खतरे को कम कर सके, लेकिन उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई और सेना अपना कोशिशों में नाकाम होती रही। इसके साथ जब भी उन्हें चुनावों में उतरने का मौका मिला उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीता। अब तक एक ही बार वह चुनाव जीत नहीं पाईं थी ये वह चुनाव थे जो 10 साल पहले सैन्य सरकार ने कराए थे। उस वक्त उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी गई थी क्योंकि उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज था।

 
नेपाल में सत्ता परिवर्तन
इसी तरह,  साल नेपाल में उस समय संवैधानिक संकट की स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई जब राष्‍ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था। राष्ट्रपति भंडारी ने 22 मई को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर पांच महीने में दूसरी बार प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था। साथ ही 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे।

 

 राष्ट्रपति भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि प्रतिनिधिसभा को संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक ही भंग किया गया है। उन्‍होंने यह भी कहा कि सर्वोच्‍च न्यायालय इस मामले में उनके फैसले को पलट नहीं सकता है ता तो उनके आदेश की न्यायिक समीक्षा ही कर सकता है। काठमांडू पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष अग्नि सपकोटा ने सरकार के 21 मई के फैसले के बारे में सुप्रीम कोर्ट में लिखित बयान दाखिल किए हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बीते नौ जून को इनसे लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा था।
 
   
 इसके पूर्व नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने 149 सांसदों का समर्थन होने का दावा किया था। प्रधानमंत्री ओली ने संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए एक और बार शक्ति परीक्षण से गुजरने में अनिच्छा व्यक्त की थी। नेपाली कांग्रेस (एनसी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर), जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के उपेंद्र यादव नीत धड़े और सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल नीत धड़े समेत विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने प्रतिनिधि सभा में 149 सदस्यों का समर्थन होने का दावा किया था। देउबा (74) नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वह 1995 से 1997 तक, 2001 से 2002 तक, 2004 से 2005 तक और 2017 से 2018 तक इस पद पर रहे हैं. देउबा 2017 में आम चुनावों के बाद से विपक्ष के नेता हैं।


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Content Writer

Tanuja

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