क्या कोयले के बिना अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रख पाएगा चीन !

punjabkesari.in Sunday, Oct 03, 2021 - 09:24 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में वादा किया कि उनके देश में 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन अपने चरम पर रहेगा और उसके बाद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती कर उसे 2060 तक शून्य तक लाया जाएगा। चीन ने यह भी कहा है कि वह अब विदेशों में कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्र स्थापित नहीं करेगा। अब वह ऐसी योजनाओं में निवेश करना चाहता है जिसमें कम से कम कार्बन का उत्सर्जन हो। जलवायु परिवर्तन को लेकर शी जिनपिंग का यह ऐलान विश्व भर के देशों को चौंकाने वाला जरुर था, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि इसी वादे और नीतियों को सख्ती से लागू करने के एक कदम से चीन आज एक बड़े बिजली संकट से गुजर रहा है। चीन की नीतियों के कारण कारण देश को कोयले की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। यह संकट इतना ज्यादा गहरा गया है कि देश के उद्योगों के उत्पादन में इसका सीधा असर पड़ा है। अब हालात यह हैं कि कोयले की आपूर्ति के लिए चीन एक बार फिर से छटपटाने लगा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कोयले के बिना चीन की अर्थव्यवस्था स्थिर रह पाएगी।

क्या कहते हैं कोयले की खपत के आंकड़े
चीन में कोयले के इस्तेमाल पर 2020 के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि देश में 56.8 फीसदी ऊर्जा कोयले से प्राप्त होती है। चीन ने 2020 में 3.84 बिलियन टन कोयले का उत्पादन किया जा कि साल  2015 के बाद सबसे अधिक था। यदि 2014 से तुलना की जाए तो इसके उत्पादन में  90 मिलियन टन की वृद्धि हुई। इसके अलावा चीन ने 2020 में 305 मिलियन टन कोयले का आयात किया, जो पिछले साल की तुलना में करीब 4 मिलियन अधिक है। साल 2020 के शुरुआती महीनों में कड़े लॉकडाउन लगाए गए। इस कारण अधिकतर उद्योग बंद हो गए। उस वक्त चीन में कोयले की खपत करीब 4.04 बिलियन टन रही। उत्सर्जन के आंकड़ों को देखते हैं तो 2020 की दूसरी छमाही में चीन के कार्बन उत्सर्जन में करीब 4 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। हालांकि शुरुआती छह महीनों में महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन की वजह से इसमें 3 फीसदी तक की कमी देखी गई थी।  इस तरह 2020 में 2019 की तुलना में चीन में सीओ2 उत्सर्जन में 1.5 फीसदी की बढ़त हुई।

चीन की मदद से प्रस्तावित हैं 600 नए कोयला संयंत्र
पिछले साल जापान और दक्षिण कोरिया ने विदेशों में नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद करने का फैसला लिया था। इसके बाद से चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया। चीन की मदद से विशेष रूप से एशिया में 600 नए कोयला संयंत्र स्थापित किए जाने हैं। चीन के विदेशों में कोयला संयत्र स्थापित करने को लेकर अभी भी कई तरह की शंकाएं बनी हुई हैं. जैसे, चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण कब से बंद करेगा या सिर्फ सरकारें ऐसा करेंगी। क्या चीन निजी क्षेत्र के जरिए भी किसी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं कराएगा। इस तरह के कई प्रश्न पहली बने हुए हैं। विदेश में कोयले के नए संयंत्र के निर्माण पर रोक लगाने की घोषणा करते समय देश में कोयला से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की बात नहीं की गई। ग्रीनपीस ईस्ट एशिया के ली शुओ के अनुसार चीन विदेशों में कोयले से बिजली का उत्पादन करने वाले जितने संयंत्र चला रहा है, उससे 10 गुना ज्यादा देश में हैं। विदेशों में जहां 100 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है, वहीं देश में करीब 1200 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है। शुओ का कहना है कि देश में कार्बन उत्सर्जन सबसे बड़ी समस्या है।

क्यों अंधेरे में डूब रहा है चीन
बीते वर्षों के दौरान चीन ने बिजली की मांग और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव आता रहा है लेकिन  साल 2021 में और भी कई ऐसे मुद्दे आए जिसने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया। कोरोना महामारी के बाद जैसे जैसे पूरी दुनिया एक बार फिर खुलने लगी चीन के सामान की मांग भी बढ़ने लगी है और उन्हें बनाने वाले चीन के कारखानों को इसके लिए अधिक बिजली की ज़रूरत पड़ने लगी। 2060 तक देश को कार्बन मुक्त बनाने के लिए चीन ने जो नियम बनाए है उसकी वजह से कोयले का उत्पादन पहले से धीमा पड़ा है, इसके बावजूद अपनी आधे से अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए चीन आज भी कोयले पर ही निर्भर है। जैसे जैसे बिजली की मांग बढ़ी है, कोयला भी महंगा हो रहा है, लेकिन चीन की सरकार वहां बिजली की कीमतों को सख्ती  साथ नियंत्रित करती है, ऐसे में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट घाटे में काम करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनमें से कई ने तो अपने उत्पादन में कटौती कर डाली है।

ब्लैकआउट से किसपर असर पड़ रहा है
इसकी वजह से चीन के कई प्रांतों और इलाकों में घरों और व्यवसायों पर असर पड़ा जहां बिजली की आपूर्ति सीमित हो गई है।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चार प्रांतों- दक्षिण चीन के ग्वांग्डोंग और पूर्वोत्तर चीन के हेइलोंगजियांग, जिलिन और लिआओनिंग में बिजली चली जा रही है।  उद्योगों वाले इलाकों में कई कंपनियों से कहा जा रहा है कि वो पीक टाइम में बिजली के इस्तेमाल में कटौती करें या फिर अपने काम के दिन कम कर दें। इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट और उर्वरक से जुड़े उद्योगों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है जहां बिजली की काफी जरूरत होती है।

संकट से निपटने के लिए क्या कर रहा है चीन
चीन की आर्थिक योजनाकार संस्था एन.डी.आर.सी. ने कई उपाय सुझाए हैं जिनमें आने वाले ठंड के मौसम में पूर्वोत्तर चीन में बिजली की सप्लाई करने को मुख्य प्राथमिकता देना तय किया गया है। इन उपायों के तहत उत्पादन बढ़ाने के लिए बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की बात की गई है जिसके लिए कोयले की अबाधित सप्लाई करना और बिजली की राशनिंग जैसे कदम शामिल हैं। चीन में बिजली उत्पादक कंपनियों के संगठन ने भी कहा है कि कोयले से बिजली बनाने वाली कंपनियां अब किसी भी कीमत पर कोयले की आपूर्ति को बढ़ा रही हैं ताकि जाड़े में बिजली की सप्लाई जारी रहे।


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Content Writer

Yaspal

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