पृथ्वी पर इस कब्रिस्तान में दफन हैं 250 से ज्यादा स्पेसक्राफ्ट

punjabkesari.in Saturday, Mar 31, 2018 - 12:45 PM (IST)

इंटरनैशनल डेस्कः आज इंसान इतना काबिल हो गया है कि उसने अंतरिक्ष के कई रहस्यों सुलझा लिया है। अंतरिक्ष में वैज्ञानिकों द्वारा स्पेसक्राफ्ट भेजे जाते है पर क्या आप जानते है कि वहां भेजे  स्पेसक्राफ्ट का धरती पर कब्रिस्तान कहां है? धरती पर एक ऐसी जगह है, इसे पॉइंट नीमो कहा जाता है। यह स्थान ग्लोब पर जमीन से किसी दूसरे स्थान की तुलना में सबसे ज्यादा दूर है और वहां पहुंचना आसान नहीं है।

माना जा रहा था कि अनियंत्रित हो चुका चीन का स्पेस स्टेशन तियांगोंग-1 (हेवनली पैलेस) भी रविवार को यहीं गिरेगा। हालांकि अब इसके यहां समाधि लेने की संभावना नहीं है। दक्षिण प्रशांत महासागर में यह जगह पिटकेयर्न आइलैंड से उत्तर की ओर 2,688 किमी दूर है। ग्लोब पर यह डॉट माहेर आइलैंड (अंटार्कटिका) से दक्षिण की तरफ है। 

एक बार फिर चर्चा में आया ये स्पॉट
चीन की स्पेस यहीं गिरने की खबर ने एक बार फिर यह स्पॉट चर्चा में आ गया है। इसे महासागर का दुर्गम स्थान कहा जाता है। टाइटेनियम फ्यूल टैंक्स और दूसरे हाई-टेक स्पेस के मलबे के लिए यह समंदर में कब्रिस्तान की तरह है। फ्रैंच नॉवलिस्ट जूल्स वर्ने के फिक्शनल सबमरीन कैप्टन के सम्मान में इसे स्पेस जंकीज या पॉइंट नीमो कहा जाता है।
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स्पेसक्राफ्ट की एंट्री की बेहतर जगह
जर्मनी में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) में अंतरिक्ष मलबे के विशेषज्ञ स्टीजन लेमंस ने कहा, 'इस जगह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां कोई नहीं रहता है। अगर नियंत्रित तरीके से स्पेसक्राफ्ट की दोबारा एंट्री कराई जाए तो इससे बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं है। संयोग से, यहां जैविक रूप से भी विविधता नहीं है। ऐसे में इसका डंपिंग ग्राउंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है- स्पेस ग्रेवयार्ड कहना भी ज्यादा सही होगा। मुख्यरूप से यहां कार्गो स्पेसक्राफ्ट दफन किए जाते हैं।' उन्होंने बताया कि अब तक यहां 250 से 300 स्पेसक्राफ्ट दफन हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने के बाद जल चुके थे।

अब से एेसे बनेगे स्पेसक्राफ्ट
जानकारों का कहना है कि भविष्य में ज्यादातर स्पेसक्राफ्ट इस तरह के पदार्थ से डिजाइन किए जाएंगे कि री-एंट्री पर पूरी तरह से पिघल जाएं। ऐसे में उनके धरती की सतह से टकराने की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी। इस दिशा में नासा और ESA दोनों काम कर रहे हैं और वे फ्यूल टैंक्स के निर्माण के लिए टाइटेनियम से ऐल्युमिनियम पर शिफ्ट हो रहे हैं। 
 


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Content Writer

Isha

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