श्रीलंका में युद्ध के नायक से कैसे खलनायक बने महिंदा राजपक्षे? जानें उदय से लेकर पतन तक की पूरी कहानी

punjabkesari.in Friday, Jul 15, 2022 - 01:28 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: उग्रवादी संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम' (लिट्टे) को कुचलने और लगभग 30 साल तक चले गृह युद्ध को खत्म करने के लिए किसी जमाने में ‘‘युद्ध नायक'' माने जाने वाले गोटबाया राजपक्षे आज उन्हीं लोगों के आक्रोश का सामना कर रहे हैं जिन्होंने कभी उन्हें सिर आंखों पर बैठाया था।

पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई और 73 वर्षीय नेता गोटबाया राजपक्षे एक पूर्व सैन्य अधिकारी हैं, जिन्होंने 1980 में असम में ‘काउंटर इन्सर्जेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल' में प्रशिक्षण लिया था। वह सैन्य पृष्ठभूमि वाले पहले शख्स हैं जिन्हें 2019 में भारी जनादेश के साथ श्रीलंका का राष्ट्रपति चुना गया था। उन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा ऐसे वक्त में दिया है जब देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाने का जिम्मेदार उन्हें ठहराते हुए प्रदर्शनकारियों ने उनके आधिकारिक आवास पर कब्जा जमा लिया था। श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद के सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। 

देश में विदेशी मुद्रा का भंडार खत्म हो गया है, जिसका मतलब है कि वह खाद्य पदार्थ और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता, जिससे इन चीजों की भारी किल्लत हो गयी है और महंगाई आसमान छू रही है। राजपक्षे ने बढ़ते दबाव के बाद अप्रैल मध्य में अपने बड़े भाई चामल और बड़े भतीजे नामल को मंत्रिमंडल से हटा दिया था। बाद में महिंदा राजपक्षे ने भी इस्तीफा दे दिया था, जब उनके समर्थकों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया था, जिससे देश के कई हिस्सों में राजपक्षे परिवार के समर्थकों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी। गोटबाया राजपक्षे ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बनाकर कुछ हफ्तों तक संकट पर काबू करने की कोशिश की लेकिन अंतत: वह नाकाम रहे और व्यापक प्रदर्शनों के बीच उन्हें अपना आधिकारिक आवास छोड़ना पड़ा। एक अज्ञात स्थान से गोटबाया राजपक्षे ने शनिवार रात को संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने को सूचित किया कि वह बुधवार को इस्तीफा देंगे। हालांकि, वह पद से इस्तीफा दिए बगैर देश छोड़कर मालदीव चले गए। मालदीव से वह सिंगापुर चले गए। 

सिंगापुर पहुंचने के बाद राजपक्षे ने अध्यक्ष को अपना इस्तीफा पत्र भेजा। श्रीलंका के सिंहली बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने लिट्टे के नेता वी. प्रभाकरण की 2009 में मौत के बाद संघर्ष खत्म करने में निभायी भूमिका के लिए राजपक्षे को ‘‘युद्ध नायक'' ठहराया। हालांकि, उन पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगा। राजपक्षे पर राजनीतिक हत्याओं के भी आरोप लगे। लिट्टे के निशाने पर आए राजपक्षे दिसंबर 2006 में एक आत्मघाती हमलावर की हत्या की कोशिश में बच गए थे। उन्हें चीन की ओर झुकाव रखने वाला भी माना जाता है। महिंदा के कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करना शुरू किया था। आलोचकों का कहना है कि महिंदा के कारण देश ‘‘चीन के कर्ज के जाल'' में फंसना शुरू हुआ। महिंदा के कार्यकाल में चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह के लिए कर्ज दिया और कर्ज न चुका पाने के कारण देश ने उसे 99 साल के पट्टे पर बीजिंग को सौंप दिया था। 

श्रीलंका हिंद महासागर में अपनी अहम सामरिक स्थिति के कारण समुद्री मार्गों पर व्यापार करने का ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और चीन भी हिंद-महासागर में तेजी से अपना दबदबा बना रहा है। मतारा जिले के पलातुवा में 20 जून 1949 को जन्मे राजपक्षे नौ भाई-बहनों में पांचवें नंबर के हैं। उनके पिता डी. ए. राजपक्षे 1960 के दशक में विजयनंद दहानायके की सरकार में प्रमुख नेता थे और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापक सदस्य भी थे। राजपक्षे ने कोलंबो में आंनदा कॉलेज से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा हासिल की और कोलंबो विश्वविद्यालय से 1992 में सूचना प्रौद्योगिकी में परास्नातक की डिग्री हासिल की। वह 1971 में कैडेट अधिकारी के तौर पर सीलोन आर्मी में शामिल हुए। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में 1983 में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। 
 


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Content Writer

Anil dev

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