अमेरिका ने अफगानिस्तान में चीजें वाकई अस्त-व्यस्त कर दीं: इमरान खान
punjabkesari.in Wednesday, Jul 28, 2021 - 08:11 PM (IST)
इस्लामाबाद, 28 जुलाई (भाषा) अफगानिस्तान में 2001 में हमले के मकसद करने और फिर कमजोर स्थिति से तालिबान के साथ राजनीतिक समाधान ढूढने की कोशिश को लेकर अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि उसने (अमेरिका ने) ‘‘वाकई वहां (अफगानिस्तान में) चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है। ’’ खान ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का एकमात्र बेहतर समाधान राजनीतिक समझौता ही है जो ‘समावेशी’ हो और इसमें ‘‘तालिबान समेत सभी गुट शामिल हो। ’’ डॉन अखबार के अनुसार खान ने अमेरिकी खबरिया कार्यक्रम पीबीएस आवर में जूडी वुडरफ के साथ साक्षात्कार के दौरान कहा,‘‘मैं समझता कि अमेरिका ने वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है।’’ यह कार्यक्रम मंगलवार रात प्रसारित हुआ। तालिबान के साथ हुए करार के तहत अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देश आतंकवादियों के इस वादे के बदले अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गये कि वे चरमपंथी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोकेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से बुला लिये जाएंगे।
खान ने ‘‘अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना की क्योंकि कभी वैसा कुछ ऐसा (संभव) था ही नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान नहीं (संभव) है, क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें -- मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया। मुझे तालिबान खान कहा गया।’’ उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि जबतक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तबतक ‘दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गयी।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे। उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10000 कर दी तब , जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गये। इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है।’’ जब साक्षात्कारकर्ता ने पूछा किया क्या वह सोचते हैं कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा ‘‘जो समावेशी हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा।’’ अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा, ‘‘ पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ पहले से ही, पाकिस्तान 30लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण दे रहा है। और हमारा डर है कि गृहयुद्ध लंबा खिंचने से और शरणार्थी आयेंगे। हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम और प्रवासियों को झेल पायें।’’ उन्होंने कहा कि दूसरी समस्या के तहत गृहयुद्ध के सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंचने का डर है। उन्होंने कहा कि दरअसल तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं और ‘‘यदि यह (अफगानिस्तान के गृहयुद्ध एवं हिंसा) जारी रहता है तो हमारे ओर के पश्तून उसमें खिंचे चले जायेंगे।’’
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
खान ने ‘‘अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना की क्योंकि कभी वैसा कुछ ऐसा (संभव) था ही नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान नहीं (संभव) है, क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें -- मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया। मुझे तालिबान खान कहा गया।’’ उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि जबतक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तबतक ‘दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गयी।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे। उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10000 कर दी तब , जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गये। इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है।’’ जब साक्षात्कारकर्ता ने पूछा किया क्या वह सोचते हैं कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा ‘‘जो समावेशी हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा।’’ अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा, ‘‘ पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ पहले से ही, पाकिस्तान 30लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण दे रहा है। और हमारा डर है कि गृहयुद्ध लंबा खिंचने से और शरणार्थी आयेंगे। हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम और प्रवासियों को झेल पायें।’’ उन्होंने कहा कि दूसरी समस्या के तहत गृहयुद्ध के सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंचने का डर है। उन्होंने कहा कि दरअसल तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं और ‘‘यदि यह (अफगानिस्तान के गृहयुद्ध एवं हिंसा) जारी रहता है तो हमारे ओर के पश्तून उसमें खिंचे चले जायेंगे।’’
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