PM इमरान ने अफगान शरणार्थियों से किया विश्वासघात, नागरिकता के वादे पर नहीं उतरे खरे

punjabkesari.in Thursday, Oct 07, 2021 - 02:19 PM (IST)

इस्लामाबाद: अफगानिस्तान में तालिबान की जीत का जश्न मनाने वाले पाकिस्तान की असलियत अब खुल कर  सामने आ गई है।  प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगान शरणार्थियों को पूर्ण नागरिकता देने के वादे से मुकर कर उनको दोराहे पर ला खड़ा किया है। इमरान ने वादा करने के तीन साल बाद भी प्रतिबद्धता पूरी नहीं की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार  इमरान ने यह वादा 18 सितंबर, 2018 को  प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद किया था। अब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे ने इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर दी है जिसके परिणामस्वरूप अफगान शरणार्थियों के लिए और अधिक जटिलताएं पैदा हुई हैं।

 

अल अरबिया पोस्ट के अनुसार पाकिस्तान में पिछले चार दशकों से रहने के बाद भी अफगान शरणार्थी नागरिक अधिकारों, कानूनी सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति जैसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।  उनसे अभी भी 'बाहरी' जैसा व्यवहार होता है। इसके कारण युवा अफगानों पाकिस्तान में अवांछित माने जाते हैं और उनकी शादी भी नहीं हो पाती। उनकी राष्ट्रीयता अविश्वास का कारण बनती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगान शरणार्थियों को मानवीय नजरिये से देखता है।

 

मार्च 2020 में वाशिंगटन स्थित वैश्विक संगठन सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट (CGD) ने 'अफगान शरणार्थियों को पूर्ण पाकिस्तानी नागरिकता देने की बात करते हुए कहा था कि अनुमानित 15 लाख पंजीकृत शरणार्थियों और बगैर पंजीकरण वाले अन्य दस लाख लोगों की मौजूदगी बताता है कि पाकिस्तान की सरकार इन्हें पहचानने से हिचक रही है। CGD के अनुसार अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति भी पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों को लागू कर सकती है। कन्वेंशन का अनुच्छेद 1 (ए) (2) स्पष्ट रूप से एक शरणार्थी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है, जिसे अपने देश में उत्पीड़न का डर है।

 

अफगान शरणार्थियों को नागरिकता देने पर आपत्तियों के खिलाफ CGD का कहना है कि नागरिकता देने के खिलाफ दो मुख्य तर्क प्रस्तावित हैं  पाकिस्तान पहले से ही गरीब है और अधिक लोगों का बोझ नहीं उठा सकता है। पाक का यह तर्क आधारहीन है क्योंकि अफगान शरणार्थी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में सालाना 350 मिलियन अमेरिकी डालर का योगदान देते हैं। यह राशि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से मिलने वाली वार्षिक 150 मिलियन अमेरिकी डालर के अतिरिक्त है।

 

इसके अलावा अफगान शरणार्थी पेशावर, कराची और खैबर-पख्तूनख्वा के कई हिस्से में व्यवसाय भी चलाते हैं। मैन्युफैक्चरर्स की बढ़ती मांग के साथ-साथ रोजगार प्रदान करते हैं। अल अरबिया पोस्ट ने बताया कि निर्माण और वेस्ट ट्रीटमेंट सेक्टर में उनका योगदान भी अमूल्य है। दूसरा तर्क पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं को लेकर दिया जाता है। कहा जाता है कि अफगान शरणार्थियों के अफगानिस्तान में आतंकवादियों से संबंध हैं। शरणार्थियों की आड़ में उन्हें नागरिकता मिल सकती है जबकि पाकिस्तान खुद ही आंतकवाद की पनाहगाह है ।


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Content Writer

Tanuja

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