अध्ययन में खुलासाः कोविड दौरान आस्ट्रेलिया में एशियाई लोगों के साथ हो रहा भारी भेदभाव
punjabkesari.in Wednesday, Aug 04, 2021 - 05:11 PM (IST)
सिडनीः आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोग महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर नस्लभेद का अनुभव कर रहे हैं। वह भी तब जबकि मौजूदा आंकड़े कोविड से संबंधित नस्लभेद की सही तस्वीर नहीं दिखाते। अधिकांश मामलों की औपचारिक तौर पर सूचना नहीं दी जा रही है और आधिकारिक सूचनाएं एशियाई आस्ट्रेलियाई लोगों पर नस्लवाद के प्रभाव को सही तरीके से पेश नहीं कर रही हैं। आस्ट्रेलिया में रहने वाले एशियाई लोगों में से 2,003 लोगों को हमने अपने हालिया राष्ट्रीय सर्वेक्षण में शामिल करके उनके द्वारा अनुभव की जाने वाली नस्लवादी घटनाओं की प्रकृति, प्रकार और आवृत्ति की जांच की।
इसमें समय के साथ (महामारी से पहले और उसके दौरान) आए बदलाव, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य, खैरियत और अपनेपन की भावना पर इन घटनाओं का असर, नस्लवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग और ऐसा होता देखने वालों की कार्रवाई (या निष्क्रियता) की भी जांच की। हमारे अध्ययन में पाया गया कि दस में से चार एशियाई ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने महामारी के दौरान नस्लवाद का अनुभव किया (और लगभग इतनी ही संख्या में लोगों ने नस्लवाद देखा)। इनमें से, हालांकि, केवल 3% ने ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग को घटना की सूचना दी। पुलिस को अधिक रिपोर्ट (12%) की, जबकि प्रतिभागियों के एक बहुत बड़े अनुपात (29%) ने उस नस्लवाद के बारे में नहीं बताया, जिसे उन्होंने अनुभव किया या देखा (दोस्तों या परिवार को भी नहीं)।
महामारी की शुरुआत में एएचआरसी को इस तरह की घटनाओं की सूचना सामान्य से अधिक प्रतीत होती है। फरवरी 2020 में, एएचआरसी ने उस वित्तीय वर्ष में नस्लीय भेदभाव की शिकायतों की उच्चतम मासिक संख्या दर्ज की। और 2020 की शुरुआत में आयोग को नस्लीय भेदभाव की सूचना देने वाले चार लोगों में से एक ने उन घटनाओं को कोविड-19 से जोड़ा। हमारे निष्कर्ष चिंताजनक रूप से इस ओर इशारा करते हैं कि यह उस नस्लवाद से बहुत कम है, जो महामारी के दौरान दरअसल हो रहा है। एशियाई ऑस्ट्रेलियाई नस्लवाद की रिपोर्ट क्यों नहीं कर रहे हैं? हमारे उत्तरदाताओं के अनुसार, औपचारिक रिपोर्टिंग की बाधाओं में वैधानिक एजेंसियों में विश्वास की कमी और यह धारणा शामिल है कि नस्लवाद की रिपोर्ट का जवाब नहीं दिया जाएगा।
उदाहरण के लिए, 63% इस बात से सहमत थे कि रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, 60% का कहना था कि घटना से ठीक से निपटा नहीं जाएगा, और 40% को रिपोर्ट लिखने वालों पर भरोसा नहीं था। जैसा कि एक प्रतिभागी ने कहा: मुझे नहीं लगता कि पुलिस बहुत कुछ करेगी, वे हमेशा कहते हैं कि उनके पास कम संसाधन हैं तो वे किसी ऐसे गुंडे का पता लगाने के लिए समय और संसाधन क्यों खर्च करेंगे, जिसने नस्ली भेदभाव किया हो। औपचारिक रिपोर्ट दर्ज करने वालों के प्रति एक और अधिक तीखा अविश्वास भी व्यक्त किया गया था: घटना का अपराधी उस कंपनी का ग्राहक था जिसके लिए मैं काम कर रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर मैंने घटना की सूचना दी होती, तो इसे नजरअंदाज कर दिया जाता। इससे भी बदतर, मुझे डर था कि मुझे घटना की रिपोर्ट करने पर उसके नतीजे भुगतने पड़ते। नस्लवादी घटनाओं की रिपोर्ट करने में निराशा, शर्म या अक्षमता की भावना अन्य बाधाएं थीं: 63% ने कहा कि इससे कोई मदद नहीं मिलेगी, 54% ने असहज या शर्मिंदा महसूस किया, और 50% घटना के बारे में भूलना चाहते थे।