LIVE: अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन बोले, अस्तित्व के संकट से जूझ रहा तालिबान

punjabkesari.in Thursday, Aug 19, 2021 - 07:24 PM (IST)

काबुल: अफगानिस्तान में अमेरिकी व नाटो सैनिकों की  वापसी के बीच पिछले कई महीनों से चल रही उथल-पुथल लगातार बढ़ती जा रही है। रविवार को तालिबन के कब्जे के साथ ही 20 साल बाद फिर से देश में आंतकियों का क्रूर शासन शुरू हो गया। अफगानिस्तान पर कब्जा करते ही तालिबान ने  जुबानी तौर पर तो देश  व जनता हित के लिए कई ऐलान किए लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। अफगानिस्तान से जुड़ी हर खबर पढ़ने के लिए जुड़े रहें punjabkesari.in के साथ...

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  • बाइडेन प्रशासन ने बड़ा फैसला लेते हुए कहा है कि अमेरिका अब अफगानिस्तान के साथ हथियारों की कोई डील नहीं करेगा। इस तरह की सभी डील्स को रद्द कर दिया गया है। इसके अलावा भारत में तालिबान का समर्थन करने वाले AIMPLB के सदस्य सज्जाद नोमानी के खिलाफ वकील विनीत जिंदल ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक शिकायत दर्ज करवाई है जिसमें उन्होंने लोगों को भड़काने व देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज करने का आग्रह किया है। वहीं नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जानकारी दी है कि वह भारतीयों को लाने के लिए प्रतिबद्ध है। अफगान संकट के बीच विदेश मंत्री जयशंकर कल यानी शुक्रवार को न्यू यॉर्क से भारत लौट सकते हैं।
  • तालिबान ने ‘‘दुनिया की अहंकारी ताकत'' अमेरिका को हराने की घोषणा करके बृहस्पतिवार को अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। अफगानिस्तान में  यह दिवस  मध्य एशियाई देश में ब्रितानी शासन का अंत करने वाली 1919 की संधि की याद में मनाया जाता है। तालिबान ने कहा, ‘‘यह सौभाग्य की बात है कि हम ब्रिटेन से आजादी की आज वर्षगांठ मना रहे हैं। इसके साथ ही हमारे जिहादी प्रतिरोध के परिणाम स्वरूप दुनिया की एक और अहंकारी ताकत अमेरिका असफल हुआ और उसे अफगानिस्तान की पवित्र भूमि से बाहर जाने पर मजबूर होना पड़ा।''
  • आतंकवादी संगठन तालिबान के साए में अफगानिस्तान ने गुरुवार को अपना 102वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। इसी दौरान यहां के लोगों ने राष्ट्रीय ध्वज का समर्थन करते हुए इसे नहीं बदलने की मांग को लेकर सोशल मीडिया पर ‘#donotchangenationalflag' अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत लोगों ने देश के लाल, हरे और काले राष्ट्रीय ध्वज का मुखर समर्थन किया, जिसे तालिबान ने देशभर से हटा दिया है और सभी जगहों पर अपने सफेद झंडे लगा दिए हैं। राजधानी काबुल में गुरुवार को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और ‘अफगानिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाए। वहीं, कई युवा हालांकि तालिबानी झंडे का समर्थन करते भी नजर आए।

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  • इस बीच, अफगानिस्तान के पंजशीर घाटी में पहुंचे विपक्षी नेता ‘नदर्न अलायंस' के बैनर तले सशस्त्र विरोध करने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। यह स्थान ‘नदर्न अलाइंस' लड़ाकों का गढ़ है, जिन्होंने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया था। यह एकमात्र प्रांत है जो तालिबान के हाथ नहीं आया है।
  • तालिबान ने अभी तक उस सरकार के लिए कोई योजना पेश नहीं की है, जिसे चलाने की वह इच्छा रखता है। उसने केवल इतना कहा है कि वह शरिया या इस्लामी कानून के आधार पर सरकार चलाएगा। अफगानिस्तान में विश्व खाद्य कार्यक्रम प्रमुख मेरी एलन मैक्ग्रोर्थी ने कहा, ‘‘हमारी आंखों के सामने एक बहुत बड़ा मानवीय संकट खड़ा हो रहा है।''
  • अफगानिस्तान से निकाले गए 84 लोगों को लेकर एक विमान कोपनहेगन पहुंचा है और वे अब ‘‘डेनमार्क में सुरक्षित हैं।'' यह जानकारी डेनमार्क ने दी। विदेश मंत्री जेप्पे कोफोड ने बृहस्पतिवार को लिखा कि ‘‘बचाव अब भी जोरशोर से चल रहा है और हम स्थानीय कर्मचारियों, दुभाषियों और अन्य समूहों को काबुल से निकालने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।'' डेनमार्क के मीडिया ने बताया कि विमान में सवार लोग स्थानीय निवासी और दुभाषिए हैं जो डेनमार्क के लिए काम करते थे। विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी।
  • इससे पहले पूर्वी शहर जलालाबाद में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तालिबान की हिंसक कार्रवाई में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई। प्रदर्शनकारियों ने अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले राष्ट्रीय ध्वज फहराया और तालिबान का झंडा उतार दिया।
  • लेकिन अब  तालिबान के सामने देश की सरकार को चलाने से लेकर सशस्त्र विरोध झेलने की संभावना जैसी कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। अफगानिस्तान के एटीएम में नकदी समाप्त हो गई है और आयात पर निर्भर इस देश के तीन करोड़ 80 लाख लोगों के सामने खाद्य संकट पैदा हो गया है। ऐसे में तालिबान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना सरकार चलाना बड़ी चुनौती होगी।
  • अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद पूरी दुनिया की निगाह इसी बात पर टिकी है कि आखिर यहां किस तरह की सरकार बनेगी। कई लोगों का कहना है कि यहां लोकतंत्र का शासन होगा तो कइयों का कहना है कि यहां तालिबानी शासन चलेगा। इन सब के बीच तालिबान के एक वरिष्ठ नेता वहीदुल्लाह हाशिमी ने इस सभी सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि वे शरिया कानून के मुताबिक ही चलेंगे।

 

अफगानों ने तालिबान से  आजादी के लिए अमेरिका से लगाई गुहार
तालिबान से सबसे ज्यादा जोखिम का सामना कर रही शिक्षित युवा महिलाएं, अमेरिका सेना के पूर्व अनुवादकों और अन्य अफगानों ने बाइडन प्रशासन से उन्हें निकासी उड़ानों में ले जाने का आग्रह किया है जबकि अमेरिका काबुल हवाईअड्डे पर जारी अव्यवस्था को ठीक करने में बुधवार को भी संघर्ष करता दिखा। अमेरिकी सेना के साथ उनके काम के चलते खतरे में पड़े अफगान नागरिक और बाहर निकलने को बेताब अमेरिकी नागरिकों ने भी वाशिंगटन से लालफीताशाही में कटौती करने की अपील की है जिसके बारे में उनका कहना है कि अगर आने वाले दिनों में अमेरिकी बल योजना के मुताबिक अफगानिस्तान से लौटते हैं तो हजारों कमजोर अफगान परेशानी में फंस सकते हैं।

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अमेरिका ने हवाई अड्डे  की सुरक्षा के लिए भेजे सैनिक व कमांडर
अमेरिका ने हवाई अड्डे को सुरक्षित करने के लिए सैनिकों, परिवहन विमानों और कमांडरों को भेजा है, तालिबान से सुरक्षित मार्ग की गारंटी मांगी है और एक दिन में 5,000 और 9,000 लोगों को लाने-ले जाने के लिए उड़ानें बढ़ा दी हैं। उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन ने अफगानों और सहयोगियों को सुरक्षित करने के लिए इसे अमेरिकी अधिकारियों का चौतरफा प्रयास बताया।  गैर सरकारी संगठन ‘एसेंड' की अमेरिकी प्रमुख मरीना केलपिंस्की लेग्री ने कहा, “अगर हम इसे नहीं सुलझाते हैं, तो हम सचमुच लोगों की मौत का आधिकारिक आदेश दे रहे होंगे।” कई दिनों से जारी आंसू गैस और गोलियों की बौछार के बीच संगठन की युवा अफगान महिला सहकर्मी हवाई अड्डे पर उड़ानों की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की भीड़ में शामिल हैं।

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रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने  की गंभीर टिप्पणी
रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने इस संबंध में गंभीर टिप्पणी की है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “हमारे पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों को निकालकर लाने की क्षमता नहीं है।” साथ ही कहा कि निकासी अभियान तब तक जारी रहेगा जब तक हमारे पास समय है या जब तक हमारी क्षमताएं जवाब नहीं दे जाती हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी अफगान नागरिक थे जो अपना देश छोड़ना नहीं चाहते थे। इनमें राष्ट्रीय पुलिस अधिकारी मोहम्मद खालिद वरदाक भी शामिल हैं जिन्होंने अमेरिकी विशेष बलों के साथ काम किया और यहां तक कि टेलीविजन पर तालिबान को लड़ाई तक की चुनौती दी थी। वह अमेरिकी बलों के देश से लौट जाने के बाद अपने गृह देश की रक्षा के लिए अपने देशवासियों के साथ खड़े रहना चाहते थे। लेकिन फिर चौंकाने वाली गति से, सरकार गिर गई। उनके राष्ट्रपति देश छोड़कर चले गए। और अब खालिद, छिपते फिर रहे हैं और इस उम्मीद में हैं कि अमेरिकी अधिकारी उनकी मदद कर उनकी वफादारी का इनाम देंगे और उन्हें एवं उनके परिवार को लगभग निश्चित मौत से बचाएंगे। लेकिन समय और अमेरिकी नीति उनके पक्ष में नहीं हैं।

 


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Content Writer

Tanuja

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