चीनी शासन में तिब्बत की संस्कृति-धर्म व जीवनशैली दांव परः डोल्मा सेरिंग

punjabkesari.in Saturday, Nov 13, 2021 - 02:11 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः चीन के बढ़ते वर्चस्व व गुंडागर्दी के चलते तिब्बत में बौद्ध धर्म पर आधारित संस्कृति, धर्म और जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। इसका खुलासा करते हुए तिब्बती संसद के निर्वासन की उपाध्यक्ष डोल्मा सेरिंग ने  बताया, ‘चीनी कहते हैं कि उनके पास कुल मिलाकर 56 अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वे उन अल्पसंख्यकों की पारंपरिक पवित्रता देने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि  तिब्बत में संस्कृति, धर्म और  बौद्ध धर्म पर आधारित जीवनशैली दांव पर है। उन्होंने यह भी कहा कि चीनी चाहते हैं कि सब कुछ कम्युनिस्ट शैली में  बदल जाए। बौद्ध धर्म हो या कुछ भी चीन सब कुछ बदल कम्युनिस्ट शैली में तबदील करना चाहता है।

 

तिब्बत में तथाकथित स्वतंत्रता पर बोलते हुए उपाध्यक्ष ने कहा कि यदि तिब्बत में कोई स्वतंत्रता है तो चीनी अधिकारी विश्व मीडिया को वहां जाने और खुद देखने क्यों नहीं देते। डोल्मा ने कहा, ‘वे विश्व मीडिया से कतराते हैं, जो दर्शाता है कि वे कुछ छुपा रहे हैं। उन्हें तिब्बत पर हर समय श्वेत पत्र क्यों देना पड़ता है? इससे पता चलता है कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है। निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रवक्ता तेनजिन लेक्षय ने कहा कि चीन ने पार्टी शासन के तहत 60-70वर्षों में तिब्बती, उइगर और मंगोलियाई सहित कई राष्ट्रवादियों पर अत्याचार किया। 

 

तिब्बतियों के लिए नेतृत्व की बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘यदि आप देखें, तो सभी आधिकारिक वेबसाइटों में तिब्बती भाषा की लिपियां भी नहीं हैं। सभी चीनी में लिखी गई हैं। वे किसके लिए काम कर रहे हैं, क्या वे तिब्बती के लिए काम कर रहे हैं?’उन्होंने कहा कि चीनियों को अधिक दयालु होने की जरूरत है, उन्हें उन लोगों की आकांक्षाओं पर गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह छह मिलियन तिब्बतियों का मुद्दा है इसलिए चीन-तिब्बत संघर्ष को 50-60 से अधिक वर्षों से लंबित हल करने की आवश्यकता है । इससे पहले  तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने बुधवार को चीनी नेतृत्व की आलोचना करते हुए कहा  था कि चीन ‘विभिन्न संस्कृतियों की विविधता को नहीं समझता है। ’

 


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Content Writer

Tanuja

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