गुजरात पुलिस ने तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में लिया, पूर्व डीजीपी श्रीकुमार को गिरफ्तार किया
punjabkesari.in Saturday, Jun 25, 2022 - 10:44 PM (IST)
अहमदाबाद, 25 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय के 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किये जाने के एक दिन बाद शनिवार को गुजरात पुलिस ने निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाने की साजिश रचने के आरोप में पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आर. बी. श्रीकुमार को गिरफ्तार किया और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में ले लिया।
अहमदाबाद अपराध शाखा के एक अधिकारी की शिकायत के आधार पर दर्ज प्राथमिकी में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का भी नाम है, जो पहले से ही एक अन्य मामले में जेल में है।
सीतलवाड़ ने अपनी ओर से मुंबई के सांताक्रूज पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई और दावा किया कि ‘‘गिरफ्तारी’’ अवैध है और उन्होंने अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि अहमदाबाद लाए जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
हिरासत में मौत के मामले में भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
गुजरात एटीएस के एक सूत्र ने बताया, ‘‘सीतलवाड़ को गुजरात एटीएस ने अहमदाबाद अपराध शाखा द्वारा दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में मुंबई में हिरासत में लिया है।’’
मुंबई में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अहमदाबाद पुलिस ने सीतलवाड़ को सांताक्रूज स्थित उनके आवास से हिरासत में लिया और स्थानीय पुलिस को सूचित करने के बाद उन्हें अपने साथ ले गई।
सीतलवाड़ के वकील विजय हिरेमथ ने आरोप लगाया, ‘‘उन्हें गुजरात आतंकवाद निरोधी दस्ता अपने साथ ले गया है....हमें मामले के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था। वे जबरदस्ती घर में घुस गए और अपने साथ ले जाने से पहले उनके साथ मारपीट की।’’
लेकिन एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने इस बात से इनकार किया कि सीतलवाड़ से मारपीट की गई थी।
अहमदाबाद अपराध शाखा के निरीक्षक डी. बी. बराड द्वारा दायर की गई शिकायत, जिस पर प्राथमिकी आधारित है, ने सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार पर आरोप लगाया कि उन्होंने कई लोगों को एक अपराध में दोषी ठहराने के लिए झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रची है।’’
शिकायत के अनुसार, उन्होंने ‘‘कई लोगों को ठेस पहुंचाने के इरादे से निर्दोष लोगों के खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक कार्रवाई शुरू की, और झूठे रिकॉर्ड तैयार किए ताकि कई लोगों को नुकसान और ठेस पहुंचाई जा सके।’’
शिकायत 2002 के गुजरात दंगों के मामलों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के समक्ष की गई विभिन्न प्रस्तुतियों और न्यायमूर्ति नानावती-शाह जांच आयोग के समक्ष अभियुक्तों द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों पर आधारित है।
प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धाराओं 468, 471, 194, 211,218, 120 (बी) के तहत दर्ज की गई है।
उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी थी।
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था। जाफरी के पति अहसान जाफरी दंगों के दौरान मारे गए थे।
सीतलवाड़ पर गवाहों को प्रभावित करने और उन्हें पहले से टाइप किए गए हलफनामों पर हस्ताक्षर करने का भी आरोप लगाया गया था। शिकायत में कहा गया है कि जकिया जाफरी को भी सीतलवाड़ ने बरगलाया था, जैसा कि 22 अगस्त 2003 को नानावती आयोग के समक्ष उनके बयान से स्पष्ट है।
शिकायत में कहा गया है कि आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और आर. बी श्रीकुमार ने नानावटी जांच आयोग के समक्ष कई बयान दिए थे जो गुजरात सरकार के खिलाफ थे।
इसमें कहा गया है कि भट्ट ने एसआईटी को भेजे गए विभिन्न दस्तावेजों में कथित तौर पर फर्जीवाड़ा किया और यह भी झूठा दावा किया कि वह 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेन्द्र मोदी) द्वारा अपने आवास पर बुलाई गई बैठक में शामिल हुए थे।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
अहमदाबाद अपराध शाखा के एक अधिकारी की शिकायत के आधार पर दर्ज प्राथमिकी में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट का भी नाम है, जो पहले से ही एक अन्य मामले में जेल में है।
सीतलवाड़ ने अपनी ओर से मुंबई के सांताक्रूज पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई और दावा किया कि ‘‘गिरफ्तारी’’ अवैध है और उन्होंने अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि अहमदाबाद लाए जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
हिरासत में मौत के मामले में भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
गुजरात एटीएस के एक सूत्र ने बताया, ‘‘सीतलवाड़ को गुजरात एटीएस ने अहमदाबाद अपराध शाखा द्वारा दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में मुंबई में हिरासत में लिया है।’’
मुंबई में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अहमदाबाद पुलिस ने सीतलवाड़ को सांताक्रूज स्थित उनके आवास से हिरासत में लिया और स्थानीय पुलिस को सूचित करने के बाद उन्हें अपने साथ ले गई।
सीतलवाड़ के वकील विजय हिरेमथ ने आरोप लगाया, ‘‘उन्हें गुजरात आतंकवाद निरोधी दस्ता अपने साथ ले गया है....हमें मामले के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था। वे जबरदस्ती घर में घुस गए और अपने साथ ले जाने से पहले उनके साथ मारपीट की।’’
लेकिन एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने इस बात से इनकार किया कि सीतलवाड़ से मारपीट की गई थी।
अहमदाबाद अपराध शाखा के निरीक्षक डी. बी. बराड द्वारा दायर की गई शिकायत, जिस पर प्राथमिकी आधारित है, ने सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार पर आरोप लगाया कि उन्होंने कई लोगों को एक अपराध में दोषी ठहराने के लिए झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रची है।’’
शिकायत के अनुसार, उन्होंने ‘‘कई लोगों को ठेस पहुंचाने के इरादे से निर्दोष लोगों के खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक कार्रवाई शुरू की, और झूठे रिकॉर्ड तैयार किए ताकि कई लोगों को नुकसान और ठेस पहुंचाई जा सके।’’
शिकायत 2002 के गुजरात दंगों के मामलों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के समक्ष की गई विभिन्न प्रस्तुतियों और न्यायमूर्ति नानावती-शाह जांच आयोग के समक्ष अभियुक्तों द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों पर आधारित है।
प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धाराओं 468, 471, 194, 211,218, 120 (बी) के तहत दर्ज की गई है।
उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी थी।
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था। जाफरी के पति अहसान जाफरी दंगों के दौरान मारे गए थे।
सीतलवाड़ पर गवाहों को प्रभावित करने और उन्हें पहले से टाइप किए गए हलफनामों पर हस्ताक्षर करने का भी आरोप लगाया गया था। शिकायत में कहा गया है कि जकिया जाफरी को भी सीतलवाड़ ने बरगलाया था, जैसा कि 22 अगस्त 2003 को नानावती आयोग के समक्ष उनके बयान से स्पष्ट है।
शिकायत में कहा गया है कि आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और आर. बी श्रीकुमार ने नानावटी जांच आयोग के समक्ष कई बयान दिए थे जो गुजरात सरकार के खिलाफ थे।
इसमें कहा गया है कि भट्ट ने एसआईटी को भेजे गए विभिन्न दस्तावेजों में कथित तौर पर फर्जीवाड़ा किया और यह भी झूठा दावा किया कि वह 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेन्द्र मोदी) द्वारा अपने आवास पर बुलाई गई बैठक में शामिल हुए थे।
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