हम पर थोपा गया इतिहास पश्चिम का दुष्प्रचार है: प्रमोद सावंत
punjabkesari.in Monday, May 16, 2022 - 10:03 AM (IST)
पणजी, 15 मई (भाषा) गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को कहा कि जो इतिहास भारत पर थोपा गया, वह वास्तव में पश्चिम का दुष्प्रचार है। उन्होंने कहा कि घटनाओं का दर्ज किया जाना ''''राय से प्रेरित'''' होने के बजाय ''''तथ्यों'''' पर आधारित होना चाहिए।
सावंत यहां कुमाऊं साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन विक्रम संपत की विनायक दामोदर सावरकर पर आधारित पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा, ''''मेरी राय में, इतिहास उन चीजों का स्वतंत्र प्रस्तुतीकरण होना चाहिए जो अतीत में हुई हैं। अनुभव और समझ के आधार पर किसी की अपनी व्याख्या हो सकती है। लेकिन इतिहास को तथ्य से प्रेरित होना चाहिए, न कि राय से।''''
उन्होंने जोर देकर कहा, ''''दुर्भाग्य से, हमारे देश में, जो इतिहास हम पर थोपा गया है, वह पश्चिम का दुष्प्रचार और वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इस पर आधारित है। उन्होंने सोचा कि हम सपेरों की भूमि हैं, उन्होंने सोचा कि हम एक गरीब देश हैं। मेरा सवाल है कि क्या उन्होंने हम पर इसलिए आक्रमण किया क्योंकि हम गरीब थे? उत्तर निश्चित रूप से ''नहीं'' है।''''
सावंत ने कहा कि सावरकर इस दुष्प्रचार को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ''1857 का स्वतंत्र समर'' के माध्यम से लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगाया और इस कारण अंग्रेज इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर हुए।
उन्होंने कहा कि सावरकर को अंग्रेजों के हाथों क्रूर दंड का सामना करना पड़ा लेकिन आजादी के बाद लोगों के एक वर्ग ने उनके बारे में पूरी तरह झूठ फैलाया।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
सावंत यहां कुमाऊं साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन विक्रम संपत की विनायक दामोदर सावरकर पर आधारित पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा, ''''मेरी राय में, इतिहास उन चीजों का स्वतंत्र प्रस्तुतीकरण होना चाहिए जो अतीत में हुई हैं। अनुभव और समझ के आधार पर किसी की अपनी व्याख्या हो सकती है। लेकिन इतिहास को तथ्य से प्रेरित होना चाहिए, न कि राय से।''''
उन्होंने जोर देकर कहा, ''''दुर्भाग्य से, हमारे देश में, जो इतिहास हम पर थोपा गया है, वह पश्चिम का दुष्प्रचार और वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इस पर आधारित है। उन्होंने सोचा कि हम सपेरों की भूमि हैं, उन्होंने सोचा कि हम एक गरीब देश हैं। मेरा सवाल है कि क्या उन्होंने हम पर इसलिए आक्रमण किया क्योंकि हम गरीब थे? उत्तर निश्चित रूप से ''नहीं'' है।''''
सावंत ने कहा कि सावरकर इस दुष्प्रचार को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ''1857 का स्वतंत्र समर'' के माध्यम से लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगाया और इस कारण अंग्रेज इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर हुए।
उन्होंने कहा कि सावरकर को अंग्रेजों के हाथों क्रूर दंड का सामना करना पड़ा लेकिन आजादी के बाद लोगों के एक वर्ग ने उनके बारे में पूरी तरह झूठ फैलाया।
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