DU की कार्यकारी परिषद की बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर होगी चर्चा

punjabkesari.in Tuesday, Aug 31, 2021 - 12:13 PM (IST)

एजुकेशन डेस्क: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की मंगलवार को होने वाली कार्यकारी परिषद की बैठक के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन, चार साल के स्नातक कार्यक्रम और राज्य सरकार द्वारा संचालित आंबेडकर विश्वविद्यालय के साथ कला महाविद्यालय के विलय पर चर्चा होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का 2022-23 से कार्यान्वयन और चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को पिछले सप्ताह अकादमिक मामलों की स्थायी समिति और अकादमिक परिषद द्वारा मंजूरी दी गई थी। इन पर मंगलवार को बैठक में चर्चा होगी और उन्हें मंजूरी मिलने की संभावना है।

कार्यकारी परिषद (ईसी) विश्वविद्यालय का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है। ईसी की बैठक में अकादमिक परिषद द्वारा अनुमोदित प्रस्तावों और कुछ अन्य मामलों, जो पहले की बैठकों से लंबित थे, चर्चा की जाती है। दिल्ली मंत्रिमंडल ने मार्च में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध कला महाविद्यालय को आंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली (एयूडी) के साथ विलय करने का निर्णय लिया था। विश्वविद्यालय ने कहा था कि वह दिल्ली सरकार द्वारा दी गई जमीन पर नजफगढ़ के रोशनपुरा और फतेहपुर बेरी में भाटी कलां में सुविधा केंद्र स्थापित करेगा।

विश्वविद्यालय की फतेहपुर बेरी में एक कॉलेज स्थापित करने की भी योजना है, जिसके लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज, स्वामी विवेकानंद, वीर सावरकर और सरदार पटेल के नाम प्रस्तावित किए गए थे। पिछले हफ्ते मंगलवार को हुई बैठक में, अकादमिक परिषद ने डीयू के पूर्व छात्र अरुण जेटली और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित पांच और नाम सामने रखे थे। हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन के खिलाफ मंगलवार को ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन करेगा।       

डूटा ने एक वक्तव्य जारी कर कहा, "यह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि 24 अगस्त की अकादमिक परिषद की बैठक में इस बड़े पुनर्गठन पर चर्चा की अनुमति नहीं दी गयी थी। चार साल का स्नातक कार्यक्रम लागू करने से डिग्री की महत्ता कम होगी और छात्रों को कार्यों के बंटवारे में अस्थिरता आएगी। "        डूटा ने कहा, " स्नातक कार्यक्रम में किसी भी प्रकार के पुनर्गठन से नौकरियों में कटौती की जाएगी जोकि अस्वीकार्य है। छात्रों और शिक्षकों को पिछले एक दशक से एक के बाद एक 'सुधार' के कार्यान्वयन में जल्दबाजी के परिणामस्वरूप परेशानियों का सामना करना पड़ा है।"


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Content Editor

rajesh kumar

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