दिव्यांग छात्रा प्रियंका ठाकुर बनी जज, पढ़ें Inspirational Story

punjabkesari.in Tuesday, Dec 10, 2019 - 12:38 PM (IST)

नई दिल्ली: कुछ के सपने साकार हो जाते हैं, तो कुछ उसे सच करने की कोशिश में लगे रहते हैं। ऐसा ही होता है जब किसी की बरसों की मेहनत, दिनरात जागने की तपस्या और हर पल संघर्ष, एक बड़ी सफलता में बदलता है। प्रियंका ठाकुर की कहानी मुश्किलों से जूझते नौजवानों के लिए एक प्रेरणा है।

दिव्यांगता को बनाया ताकत, कांगड़ा की बेटी प्रियंका ठाकुर बनी सिविल जज

बता दें कि प्रियंका देख नहीं सकती हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कर दिखाया जिसका सपना आंखों से सक्षम लोग भी देखते हैं। चुनौतियों से हार न मानकर जहां उन्हाेंने अपने मां बाप का नाम राेशन किया है, वहीं दूसराें के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी हैं।

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अगर प्रतिभा और लगन हो तो विकलांगता भी रास्ते मे किसी भी प्रकार का रोड़ा नहीं अटका सकती है, यह बात सिद्ध करके दिखाई है प्रियंका ठाकुर ने।  बता दें कि प्रियंका ने दिनरात मेहनत करके हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा पास की है। उन्होंने ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से कानून में पीएचडी की और इस दौरान ही उनका सिलेक्शन हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में हो गया। इस परीक्षा में दसवां स्थान हासिल किया है और उनकी नियुक्ति बतौर सब-जज होगी। 

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कांगड़ा से हैं प्रियंका
कांगड़ा जिले के इंदौरा तहसील के गांव वडाला की रहने वाली प्रियंका ठाकुर के पिता सुरजीत सिंह बीएसएफ में इंस्पेक्टर पद से रिटायर हुए हैं और माता सृष्टा देवी गृहिणी हैं। हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र से एलएलबी की परीक्षा पास करने के बाद प्रियंका ने यहीं से एलएलएम की। 

इंटरव्यू में हैदराबाद एनकाउंटर पर था पहला सवाल
प्रियंका ठाकुर कहती है कि इंटरव्यू के दाैरान मुझसे पूछा गया कि आज की हेडलाइन क्या हैं। इस पर मैंने हैदराबाद में हुए रेपिस्टाें के एनकाउंटर के बारे में बताया। मुझसे पूछा गया कि हैदराबाद में हुए रेपिस्टाें के एनकाउंटर काे आप कितना सही मानते हाे। मैंने इसका जवाब देते हुए कहा कि कानून का सम्मान हाेना चाहिए। कानून के नियमाें की अवहेलना नहीं हाेनी चाहिए।

कामयाबी का श्रेय
उन्होंने कहा कि "हिमाचल में यह चौथा प्रयास था, जिसमें उन्हें सफलता हासिल हुई है। उन्होंने अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक अभियोजन नरेश घई व माता प्रधानाचार्य संगीता घई, स्कूल व विवि के अध्यापकों सहित अपने मुश्किल दौर में काम आए दोस्तों को दिया है।" उनका कहना है कि यदि दृढ़ निश्चय हो तो एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलती है। 


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Author

Riya bawa

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