अब पीओपी नहीं गोमय गणेश का करें पूजन, गौशालाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशासन सराहनीय पहल

punjabkesari.in Friday, Aug 21, 2020 - 01:48 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ 
22 अगस्त यानि कल साल सबसे अहम कहे जानी वाली गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, जिसके उपलक्ष्य में हर साल इस दिन को बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घर में बप्पा को विराजमान कर अनंत चतुर्दशी तक यानि पूरे 11 दिन अपने घरों रखते हैं और इनकी खूब सेवा करने के बाद इस दिन यानि अनंत चतुर्दशी के दिन पावन नदियों में गणपति बप्पा की मूर्ति को विर्सजित कर देते हैं। मगर इस बार कोरोना महामारी के चलते देश के किसी भी हिस्से में उस धूम धाम से गणेशोत्सव नहीं मनाया जाएगा, जैसे प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
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हां मगर ऐसा भी नहीं है कि लोग बप्पा के आगमन का स्वागत करने के लिए तैयारियां नहीं कर रहे। हर कोई इन्हें घर में लाने के लिए बेताब दिखाई दे रहा है, हालांकि लोगों का कहना है कोरोना से खुद को बचाने के लिए भी लोग कदम उठा रहे हैं। बाज़ारों में भगवान गणेश की विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएं देखने को भी मिल रही है। इसी बीच सतना जिले से जुड़ी खबर सामने आ रही है कि यहां पर गांव की गोशालाओं में गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है, जहां प्रशासन का सहयोग मिलने के बाद गौशालाएं स्वावलंबी बन जाएंगी।

सनातन धर्म की बात करें तो देवों के देव महादेव के पुत्र गणेश जी को समस्त देवी-देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय देवता का दर्जा प्राप्त है। यही कारण है चाहे किसी नएकाम की शुरुआत हो या की धार्मिक कार्य, सबसे पहले इनका ही आवाह्न किया जाता है। बताया जा रहा है प्रशासन की एक अनुकरणीय पहल के चलते जनपद पंचायत उचेहरा की ग्राम पंचायत बांधी मोहर की गौशाला में मुंबई गणेश का निर्माण व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। यहां की गणेश प्रतिमाएं जिले में बिक्री के लिए उपलब्ध रहेंगी।
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सतना से रवि शंकर पाठक की रिपोर्ट के अनुसार बता दें कि इसी प्रकार सतना जिले की प्रसिद्ध गौशाला ललितंबा गौ तीर्थम में भी इसका निर्माण जल्दी ही शुरू करने की बातें सामने आ रही हैं, जिसे समाज के लोगों में भी वितरित किया जाएगा। ललितांबा गो तीर्थम रमपुरवा धाम के आचार्य जय राम जी महाराज ने बताया कि प्रतिमाओं से पहले गोबर गणेश का ही निर्माण होता था। शास्त्रों में भी गोबर गणेश का उल्लेख मिलता है। हर पूजन में गौ गोबर से ही गणेश स्थापित किए जाते हैं, तत्पश्चात कोई अन्य पूजन शुरू होता है।

वैसे को के लिए गणेश प्रतिमाएं बहुत सी धातुओं व मिट्टी आदि से बनाए जाती हैं। किंतु एक संत ऐसे भी हैं जो इस दौरान गणेश जी के प्रतिमाएं गाय के गोबर से बनवाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि गोबर गणेश की विधि विधान से पूजा भी होती है। इसके उपरांत इनका विसर्जन कर इन्हें खेतों में मिला दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे न केवल प्रकृति का संरक्षण होता है, बल्कि गौर गणेश की शास्त्र सम्मत पूजा भी संपन्न होती है।
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ऐसा धार्मिक मान्यताएं हैं कि गणपति बप्पा के गौर गणेश स्वरूप में रिद्धि सिद्धि के संग लक्ष्मी हैं तथा गोमय में असीम दैवीय सकारत्मक ऊर्जा विद्यमान हैं। इसके यानि गोमय के स्पर्श एवं गंध मात्र से अनेक प्रकार के रोग दोष दूर हो जाते है। गौर गणेश का निर्माण एक निर्विकल्प निर्विकार परम्परा है।

इस परम्परा की एक अन्य विशेष बात और है जो इस सदी के लिए वरदान साबित हो सकती है। कहा जाता है कि हजारों गौर गणेश निर्माण कर तथा बाद में इनके विसर्जन की क्रिया को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है।
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Jyoti

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