किसकी रक्षा के लिए भोलेनाथ को करना पड़ा ये काम

punjabkesari.in Friday, Jan 18, 2019 - 01:46 PM (IST)

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हिंदू धर्म में मां दुर्गा को कईं नामों से जाना जाता है। उन्हीं नामें में से एक हैं महाकाली। शास्त्रों में बताया गया है कि मां काली की उत्पति राक्षसों के नाश के लिए हुई थी। माता का रूप इतना विकराल है कि खुद काल भी इनसे भय खाता है। मां काली के गुस्से पर काबू पाने के लिए भगवान शिव उनके चरणों में आकर लेट गए थे। आज हम आपको इस संबंध से जुड़ी एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे ये पला चलेगा कि आखिर क्यों महादेव खुद उनके पैरों में आकर लेट गए।   
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पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य रक्तबीज ने कठोर तप करके वर पाया था कि अगर उसके खून की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उससे अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे। धीरे-धीरे उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्दोश लोगों पर करना शुरू कर दिया। उसने अपना आतंक तीनों लोकों पर मचा दिया। देवताओं ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। भयंकर युद्ध का आगाज हुआ। देवता अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबीज का नाश करने को आगे बड़े थे मगर जैसे ही उसके शरीर से एक भी बूंद खून धरती पर गिरता तो उस एक बूंद से अनेक रक्तबीज पैदा हो जाते।
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मां काली असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिए ही हुई थी। सभी देवगण मिलकर उनकी शरण में जा पहुंचे। महाकाली ने देवताओं की रक्षा के लिए विकराल रूप धारण कर युद्ध भूमि में प्रवेश किया। महाकाली ने राक्षसों का वध करना आरंभ किया लेकिन रक्तबीज के खून की एक भी बूंद धरती पर गिरती तो उससे अनेक दानवों का जन्म हो रहा था। जिससे युद्ध भूमि में दैत्यों की संख्या बढ़ने लगी। तब मां ने अपनी जिह्वा का विस्तार किया। उस दानव के खून की एक बूंद धरती पर गिरने की बजाय उनकी जिह्वा पर गिरने लगी। वह लाशों के ढेर लगाती गई और उनका खून पीने लगी। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप ले चुका था कि उनको शांत करना जरुरी था मगर हर कोई उनके पास जाने से भी डर रहा था।
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तभी महादेव उनके मार्ग में लेट गए। जब उनके चरण भगवान शिव पर पड़े तो वह एकदम से ठिठक गई। उनका क्रोध शांत हो गया। लेकिन वे ये सेत कर रोने लग गई कि उन्होंने अपने पति के ऊपर अपना पैर रख दिया और उनसे बहुत बड़ा अपराध हो गया। लेकिन इसके पीछे असल वजह यही थी कि अगर भोलेनाथ माता को शांत नहीं करते तो पृथ्वी का अंत निश्चित था। 
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