विजयदशमी के दिन इन स्थानों पर होती है गजब की धूम, आईए आप भी करें दीदार

punjabkesari.in Tuesday, Oct 08, 2019 - 08:57 AM (IST)

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शारदीय नवरात्रि का समापन होने के बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। बता दें कि इसे मनाने के पीछे की वजह असत्य की सत्य पर जीत है। यानि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध करके मां सीता को लंका से छुड़वाया था। बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य पर इस दिन देशभर में रावण दहन और मेलों का आयोजन किया जाता है। देश के हर कोने में इसकी धूम अलग ही होती है। हर साल की तरह इस साल भी ये पर्व आज यानि दिन 08 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। वहीं आज हम आपको देश की ऐसा 5 जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर इस त्योहार को कुछ खास ही तरीके से मनाया जाता है। 
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मैसूर
इस स्थान पर दशहरा मनाने की परंपरा 409 वर्षों से चली आ रही है और जिसे आज भी बड़ी ही बेखूबी से मनाया जाता है। कर्नाटक के मैसूर जिले का दशहरा पूरी दुनिया में बहुत प्रसिद्ध है। यहां का दशहरा देखने के लिए दुनियाभर से लोगों की भीड़ उमड़ती हैं। दशहरा का मेला नवरात्रि के दिनों से ही प्रारंभ हो जाता है। मैसूर में 1610 में दशहरा का सबसे पहला मेला आयोजित किया गया था। महिषासुर के नाम पर ही मैसूर का नाम भी रखा गया है । दशहरे के पावन दिन मैसूर महल को एक नई नवेली दुल्हन की तरह से सजाया जाता है। 

कुल्लू
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के ढालपुर मैदान में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व को पूरी दुनिया में सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। कुल्लू में होनो वाले दशहरा को अंतरराष्ट्रीय त्योहार भी घोषित किया गया है और यहां पर काफी संख्या में लोग आते हैं। यहां दशहरा का त्योहार 17वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। यहां पर एक खास परंपरा है जोकि सदियों से चली आ रही है। जिसमें लोग अलग-अलग भगवानों की मूर्ति को सिर पर रखकर भगवान राम से मिलने के लिए जाते हैं। यह महोत्सव यहां पर 7 दिन तक मनाया जाता है।
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मदिकेरी
कर्नाटक के मदिकेरी शहर में दशहरा का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है और शहर के 4 बड़े अलग अलग मंदिरों में आयोजन किया जाता है। दशहरा पर्व की तैयारी यहां पर 3 माह पहले से ही शुरू कर दी जाती है। दशहरा के शुभ दिन यहां पर एक विशेष उत्सव जिसे मरियम्मा के नाम से जाना जाता है, उसकी शुरुआत होती है। 

कोटा
दशहरा का आयोजन राजस्थान के कोटा शहर में लगातार 25 दिनों तक किया जाता है। महाराव भीमसिंह द्वितीय ने इस मेले की शुरुआत 125 वर्ष पूर्व में की थी और तबसे यह परंपरा आज तक निभाई जा रही है। इस दिन यहां पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण का पुतला दहन किया जाता है। 
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बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दण्डकरण्य में भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान आए थे। इसी स्थान के जगदलपुर में मां दंतेश्वरी मंदिर भी है, जहां पर हर वर्ष दशहरा पर वन क्षेत्र के हजारों आदिवासी आते हैं। बस्तर के लोग 600 साल से यह त्योहार मनाते आ रहे हैं। इस जगह पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। यहां के आदिवासियों और राजाओं के बीच अच्छा मेल जोल था। राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चलाने की प्रथा की शुरूआत की थी। इसी कारण से यहां पर रावण दहन नहीं बल्कि दशहरा के दिन रथ चलाने की परंपरा चली आ रही है।


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