वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर जानें कौन हैं मां सरस्वती

punjabkesari.in Saturday, Jan 20, 2018 - 09:01 AM (IST)

लोक चर्चा में मां सरस्वती को शिक्षा की देवी कहते हैं। पशु को मनुष्य बनाने का, अंधे को नेत्र देने का श्रेय माता सरस्वती को जाता है। शास्त्रों में मां सरस्वती को साहित्य, संगीत और कला की देवी माना जाता है। उनमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। महाकवि कालिदास, वरदराचार्य, वोपदेव आदि विभूतियां सरस्वती उपासना के सहारे ही उच्च कोटि की विद्वान बनीं।


सरस्वती आराधना से मन: स्थिति में सुप्त मस्तिष्कीय क्षमता सुविकसित की जा सकती है तथा बुद्धि को पराकाष्ठा की सीमा तक जागृत किया जा सकता है। सरस्वती उपासना की प्रक्रिया भावविज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। मन:शास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक प्रक्रिया है। यह चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूर्णत: समर्थ है। सरस्वती साधना को शास्त्रीय विधि से संपन्न करने पर बौद्धिक क्षमता विकसित होती है। व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचाइयों को छू सकता है। 


कल्पना शक्ति की कमी, जड़ता, समय पर उचित निर्णय न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीर्घ सूत्रता जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। इस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।


सरस्वती का स्वरूप आलौकिक है। उनके एक मुख तथा चार हाथ हैं। मुख पर सदैव मुस्कान रहती है। मुस्कान से उल्लास का मान उचित प्रतीत होता है। हाथों में वीणा भाव संचार एवं कलात्मकता का बोध कराती है। एक हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। चतुर्थ हाथ में सरस्वती माला धारण किए रहती है। माला से सात्विकता का बोध होता है। मां सरस्वती मयूर पर सवारी करती हैं। मयूर सौंदर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। उनके मुख पर मुस्कान व आभा जीवन में प्रसन्नता का वरण करने को प्रोत्साहित करती है। मां सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के मुख से हुआ माना गया है। वह वाणी की अधिष्ठाणी देवी हैं। पवित्रता के प्रतीक श्वेत पुष्प तथा मोती इनके आभूषण हैं। सरस्वती मां का संबंध बोलने, लिखने व शब्द की उत्पत्ति दिव्य श्लोक से भी है। देवी सरस्वती मनुष्य समाज को महानतम संपत्ति ज्ञान संपदा प्रदान करती हैं। 


मां सरस्वती जीवन की जड़ता को दूर करती हैं। सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणावादिनी मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए। मां सरस्वती स्तोत्र का जाप करना चाहिए। जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कंद के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है। जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं जिनके हाथ में वीणा दंड शोभायान है। जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है। जो ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर द्वारा सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हैं। 


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