Valentine special: शादी के बाद भी चाहते हैं पार्टनर से मिठी छेड़खानी तो...

punjabkesari.in Monday, Feb 10, 2020 - 09:17 AM (IST)

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जीवन में धन-संपत्ति, मोटर-कार, बंगला, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, पत्नी और बच्चे होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन मधुर न हो तो ऐसा जीवन व्यर्थ है। इतना सब कुछ होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन में क्लेश, घर में अशांति, तनाव भरा माहौल, पारिवारिक सदस्यों के बीच मतभेद और विवाद हो तो आप ही बताइए ऐसे जीवन को क्या हम सफल जीवन कह सकते हैं? कदापि नहीं। इस आधुनिक युग की भाग-दौड़ में परेशान व्यक्ति क्या चाहता है? केवल कुछ पलों की शांति, जब वह घर में आए तो सभी परेशानियों को भूल जाए और अपने पारिवारिक सदस्यों के बीच सुख का कुछ समय बिता सके। दुर्भाग्य की बात है कि यह संतोष सभी को नहीं मिलता। 

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दाम्पत्य सुख में उत्पन्न हो रही बाधाओं को दूर करने के लिए जन्मकुंडली के ग्रहयोगानुसार अशुभ ग्रह को शुभ बनाने हेतु उपाय किए जा सकते हैं। सामान्यत: जन्मकुंडली के सप्तम भाव से दाम्पत्य जीवन का विचार किया जाता है। यदि सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो दाम्पत्य सुख में बाधा आती है। नैसर्गिक पाप ग्रहों में सूर्य, मंगल, शनि, राहु एवं केतु आते हैं।

सूर्य का प्रभाव सप्तम भाव पर होने पर जीवनसाथी से स्वाभिमान का टकराव होता है। फलस्वरूप पति-पत्नी के अलग-अलग रहने की स्थितियां बन जाती हैं। ऐसी स्थिति में यदि पति-पत्नी दोनों ही मुंह में पानी भर कर स्नान करें, तो दोनों का सामंजस्य बैठने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को रविवार के दिन लाल वस्त्र पहनने से बचना चाहिए।

मंगल को दाम्पत्य सुख के लिए पीड़ादायक ग्रह माना जाता है क्योंकि मंगल की विवाह के भाव में युति अथवा दृष्टि के कारण विलम्ब, विवाह संपन्न होने में अवरोध एवं विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन में विवाद होते हैं। मंगल के दुष्प्रभाव के कारण पति-पत्नी में मारपीट एवं हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य हो जाता है, बचाव के लिए पति-पत्नी दोनों को चांदी का आभूषण धारण करना चाहिए। गले में चांदी की जंजीर अथवा हाथ में चांदी का ब्रेसलेट धारण किया जा सकता है। पति-पत्नी में जिसका स्वभाव उग्र हो, उसे मिर्च एवं तीखी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि व्यक्ति मांसाहारी हो, तो उसे शाकाहारी बनना चाहिए।

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सप्तम भाव पर शनि का दुष्प्रभाव होने पर विवाह में विलम्ब होता है। यदि शनि का अशुभ प्रभाव अधिक हो, तो विवाह के बाद भी जीवनसाथी के प्रति उत्साह एवं उमंग की भावना नहीं होती। दाम्पत्य जीवन में परस्पर आकर्षण का अभाव होता है। इस कारण साथ रहते हुए भी पति-पत्नी पृथक रहने के समान जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसी स्थिति में शनि के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए व्यक्ति को मंगलवार के दिन नवीन लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। पति को लाल वस्त्र खरीद कर पत्नी को भेंट स्वरूप देने चाहिएं। 

सप्तम भाव पर राहु के दुष्प्रभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में अन्य व्यक्ति के दखल के कारण बाधाएं खड़ी होती हैं। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन तब तक खराब रहता है जब तक कि वे अन्य व्यक्तियों के परामर्श के अनुसार कार्य करते रहते हैं। 

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यदि जातक नशीली वस्तुओं का सेवन करे, तो उसका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं हो सकता। अत: ऐसे व्यक्ति को सर्वप्रथम किसी भी प्रकार की नशीली एवं विषैली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। जैसे-शराब, अफीम, गांजा, चरस, धूम्रपान आदि। 

राहू का दुष्प्रभाव अधिक होने पर दाम्पत्य जीवन में गाली-गलौच, अपशब्द का प्रयोग होता है। पति-पत्नी एक-दूसरे की निंदा एवं आलोचना करते हैं। अत: दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए अपने जीवनसाथी की प्रशंसा करनी चाहिए।


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Niyati Bhandari

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