यहां बालरूप में भागकर पहुंचे थे गणपति जी

punjabkesari.in Wednesday, Feb 26, 2020 - 03:52 PM (IST)

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भगवान गणेश की महिमा का बारे में तो हर कोई जानता ही है। बुधवार के दिन इनकी पूजा की जाती है। वैसे तो आप में से बहुत से लोगं ने इनके मंदिरों के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जोकि बहुत ही पुराना है और जिसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। 
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तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी पर भगवान गणेश का उच्ची पिल्लयार मंदिर के नाम से स्थित है। जमीन से लगभग 273 फुट की ऊंचाई पर है और मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 400 सिढि़यों की चढ़ाई करनी पड़ती है। पहाड़ों पर होने की वजह से यहां का नजारा बहुत ही सुंदर होता है। 
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने अपने भक्त और रावण के भाई विभीषण को भगवान विष्णु के ही एकरूप रंगनाथ की मूर्ति प्रदान की थी। विभीषण वह मूर्ति लेकर लंका जाने वाला था। सभी देवता चाहते थे कि मूर्ति विभीषण के साथ लंका न जाए। सभी देवताओं ने भगवान गणेश से सहायता करने की प्रार्थना की। वहीं मूर्ति को लेकर एक मान्यता थी कि वह जहां रखी जाएगी वहीं स्थापित हो जाएगी। वहीं चलते-चलते जब विभीषण त्रिचि पहुंचे तो वहां पर कावेरी नदी को देखकर उसमें स्नान करने का विचार उनके मन में आया। वह मूर्ति संभालने के लिए किसी को खोजने लगा। तभी उस जगह पर भगवान गणेश एक बालक के रूप में आए। विभीषण ने बालक को भगवान रंगनाथ की मूर्ति पकड़ा दी और उसे जमीन पर न रखने की प्रार्थना की।
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विभीषण के जाने पर गणेश ने उस मूर्ति को जमीन पर रख दिया। जब विभीषण वापस आए तो उन्होंने मूर्ति जमीन पर रखी मिली। उन्होंने मूर्ति को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन उठा न सके। इससे क्रोधित होकर विभीषण बालरूपी गणेश को खोजने लगे। विभीषण को अपनी तलाश में आता देख भगवान गणेश भागते हुए पर्वत के शिखर पर पहुंच गए, आगे रास्ता न होने पर भगवान गणेश उसी स्थान पर बैठ गए। जब विभीषण ने उस बालक को देखा तो क्रोध में उसके सिर पर वार कर दिया। ऐसा होने पर भगवान गणेश ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। भगवान गणेश के वास्तविक रूप को देखकर विभीषण ने उनसे क्षमा मांगी और वहां से चले गए। तब से भगवान गणेश उसी पर्वत की चोटी पर ऊंची पिल्लयार के रूप में स्थित है।
कहा जाता है कि विभीषण ने भगवान गणेश के सिर पर जो वार किया था, उस चोट का निशान आज भी इस मंदिर में मौजूद भगवान गणेश की प्रतिमा के सिर पर देखा जा सकता है।


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