करिश्मा किस्मत का, पलक झपकते ही जाना जा सकता है कल का भविष्य

punjabkesari.in Thursday, Mar 16, 2017 - 10:57 AM (IST)

ज्ञानी का हृदय शान्त, शीतल, अद्वैत आत्मा में प्रतिष्ठित होता है। अगर हम अपने जीवन की मीमांसा करके जानना चाहें कि हमारा भविष्य अन्धकारमय है कि प्रकाशमय है, तो हम जान सकते हैं, देख सकते हैं। किसी व्यक्ति को देखते हैं, उससे व्यवहार करते हैं तब उसके दोष दिखते हैं तो समझो हमारा जीवन अन्धकारमय है। कोई कितना भी हमारे साथ अनुचित व्यवहार करता है फिर भी हमें अपना दोष दिखे और उसके गुण दिखें तो समझ लेना कि हमारा भविष्य उज्जवल है। इससे भी उज्जवल जीवन वह है जिसमें न गुण दिखें न दोष दिखें, संसार स्वप्न जैसा भासने लगे। संसार को स्वप्न-सा देखने वाला अपना आपा परमात्मा में विश्राम पावे, ऐसी प्यास पैदा हो जाय तो समझ लेना कि भविष्य बड़ा सुहावना है, बड़ा मंगलकारी है।

 

ये प्रसंग जीवन में नई चेतना का संचार कर सकता है। माण्डव्य ऋषि के कुल में उत्पन्न हुए मंकी नामक ब्राह्मण संसार की नश्वरता देखकर, संसार के जीवों को हेय और उपादेय, ग्रहण और त्याग से जलते देखकर सत्य को खोजने के लिए कई तीर्थों में गए। कितने ही जप-तप किए, कई व्रत और नियम किए हृदय की तपन मिटी तो जप, तप, व्रत और तीर्थ से पाप दूर हुए। उनके कषाय परिपक्व हुए अर्थात अन्तःकरण शुद्ध हुआ। पाप जल गए। उनके मन में था कि सामने धीवरों के पांच-सात घर हैं। वहां जाकर जलपान करूंगा, वृक्ष के नीचे आराम पाऊंगा। वह कुछ ही कदम चले थे की सामने से आते हुए वशिष्ठ जी मिल गए।


वशिष्ठ जी ने मंकी ऋषि की मन स्थिति भांप ली और कहने लगे,"हे मार्ग के मीत ! अज्ञानी जो आप जलते हैं, राग-द्वेष में, हेय-उपादेय में जलते हैं उनके पास जाकर तुमको क्या शान्ति मिलेगी ? जैसे किसी को आग लगे और पेट्रोल पंप के फुव्वारे के नीचे जाकर आग बुझाना चाहे तो वह मूर्ख है। ऐसे ही जो आपस में राग-द्वेष से जलते हैं, जो संसार की आसक्तियों से बंधे हैं, उनके संपर्क में और उनकी बातों में आकर हे जिज्ञासु ! तेरी तपन नहीं मिटेगी। तेरी तपन और राग-द्वेष और बढ़ेंगे। "


वशिष्ठ जी आगे कहते हैं,"हे मंकी ऋषि ! तुम ज्ञानवानों का संग करो। मैं तुम्हारे हृदय की तपन मिटा दूंगा और अकृत्रिम शान्ति दूंगा। संसार के भोगों से, संसार के सम्बन्धों से जो शान्ति मिलती है वह कृत्रिम शान्ति है। जब जीव अन्तर्मुख होता है, जब परमात्माभिमुख होता है, चित्त शान्त होता है तब जो शान्ति मिलती है वह आत्मिक शान्ति है।"


मंकी ऋषि विवेक-वैराग्य से संपन्न थे। वशिष्ठजी का दर्शन करके उनको अकृत्रिम शान्ति का एहसास हुआ। वे कहने लगे, "भगवन् ! हे मुनिशार्दूल ! आपके दर्शन से चित्त में प्रसन्नता छा जाती है और आकर्षण पैदा होता है। वह आकर्षण निर्दोष आकर्षण है। संसारियों की मुलाकात से चित्त में क्षोभ पैदा होता है। सूर्य का तेज होता है वह तपाता है जबकि आपका तेज हृदय में परम शान्ति देता है। आपका तेज हृदय की तपन को मिटाता है। आपका आकर्षण भोगों के आकर्षण से बचाता है। आपका संग परमात्मा का संग कराने वाला है।"


मंकी ऋषि वशिष्ठ जी का संग पाकर अकृत्रिम शांति को प्राप्त हुए, भीतर के प्रसाद को उपलब्ध हुए, परमात्मा-विश्रान्ति पायी। परमात्म-विश्रान्ति से बढ़कर जगत में और कोई सुख नहीं और कोई धन नहीं और कोई साम्राज्य नहीं। वे घड़ियां धन्य हैं जिन घड़ियों में परमात्मा की प्रीति, परमात्मा का चिन्तन और परमात्मा का ध्यान होता है। प्रतिदिन अपने अन्तःकरण का निर्माण करना चाहिए। अपने अन्तःकरण में परमात्मा का ज्ञान भरकर उसका चिन्तन करने से अन्तःकरण का निर्माण होता है। अज्ञान से, अज्ञानियों के संग से, अज्ञानियों की बातों से अन्तःकरण में अविद्या का निर्माण होता है और जीव दुःख का भागी बनता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News