हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए ये एक चीज़ है ज़रूरी

punjabkesari.in Thursday, Sep 12, 2019 - 04:32 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंदध्यान चंद ने 16 वर्ष की उम्र में सेना ज्वाइन कर ली थी। उन दिनों सेना में हॉकी व फुटबाल का बहुत चलन था। ध्यान सिंह ने साथी सैनिकों को हॉकी खेलते देखा तो इस खेल की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने भी हॉकी खेलनी शुरू की। एक दिन जब वह हॉकी खेल रहे थे तो सूबेदार बाले तिवारी की नजर उन पर पड़ी। उनके खेल की गति से तिवारी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद उन्हें ट्रेनिंग देने का फैसला कर लिया। प्रशिक्षण से ध्यान ङ्क्षसह का खेल निखरता चला गया। सेना में तो उनके खेल की तारीफ होने ही लगी, खुद ध्यान सिंह पर भी हॉकी का जुनून सवार हो गया।

वह दिन-रात अभ्यास करने लगे। जब उनके संगी-साथी थक कर लौट जाते वह अकेले मैदान में अभ्यास करते। रात में जब हॉकी स्टिक की आवाजें आतीं तो उनके साथी समझ जाते कि ध्यान सिंह खेल में लगे हैं। एक बार चांदनी रात में ध्यान सिंह अकेले प्रैक्टिस कर रहे थे। तभी तिवारी उधर से गुजरे।

ध्यान सिंह को यूं अकेले प्रैक्टिस करते देख वह इतने खुश हुए कि उन्हें गले लगाते हुए बोले, ''तुम एक दिन अवश्य हॉकी का चांद बनकर चमकोगे। मैं तुम्हें आज से ध्यान सिंह नहीं बल्कि ध्यान चंद कहूंगा ताकि तुम्हें हर पल यह याद रहे कि एक दिन हॉकी के आसमान में चांद की तरह चमकना है और देश का नाम रोशन करना है।''

ध्यान सिंह गुरु के पैर छूते हुए बोले, ''मैं हॉकी के खेल में भारत का नाम रोशन करने के लिए दिन-रात एक कर दूंगा।''

उस दिन के बाद से ध्यान सिंह ने और मेहनत करनी शुरू की। वही ध्यान सिंह मेजर ध्यान चंद के रूप में हॉकी के जादूगर कहलाए। उन्होंने न केवल भारत को ओलिम्पिक में 3 स्वर्ण पदक दिलाए बल्कि हॉकी के इतिहास में अपना नाम भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया।


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Jyoti

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