ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने से पहले Pass करनी पड़ती है ये परीक्षा
punjabkesari.in Thursday, Jan 16, 2020 - 09:30 AM (IST)
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एक तपस्वी था, अनुभवी था। उसका बड़ा नाम था। एक युवक उसके पास गया और बोला, ‘‘महाराज! मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं। जीवन के कल्याण मार्ग पर चलना चाहता हूं। आप मुझे शिक्षा दें।’’
तपस्वी ने कहा, ‘‘ठीक है, दीक्षा मैं दूंगा, पर पहले तुम मेरा एक काम करो। यह काम तुम ठीक से कर लोगे तो फिर पक्की बात होगी, मैं तुम्हें दीक्षा दूंगा। पहले मेरी इस परीक्षा में से गुजरो।’’
शिष्य बनने के अभिलाषी युवक ने कहा, ‘‘महाराज बताइए, क्या काम है?’’
तपस्वी ने उसे एक डिब्बा दिया और कहा, ‘‘इस डिब्बे को ले जाओ। पड़ोस के कस्बे में मेरा एक मित्र रहता है, उसे दे आना, पर रास्ते में इसे खोलकर मत देखना। उसे देकर आ जाना है, बस।’’
युवक मन ही मन हंसा। बोला, ‘‘बस इतना-सा काम है। मैं अभी इसे दे कर आता हूं। आपके मित्र को मैं जानता हूं। कोई कठिनाई नहीं है। मैं अभी डिब्बा पहुंचा कर आता हूं।’’
युवक ने डिब्बा हाथ में लिया। एकदम हल्का था। चल दिया उसे लेकर। चलते-चलते उसे लगा कि डिब्बे में कुछ हलचल है। उसके मन ने कहा, ‘‘क्या होगा डिब्बे में? ऐसा क्या पहुंचाना है मित्र को?’’
उसने देखा डिब्बे पर ताला नहीं है। उसने सोचा, इसे खोलकर देखा जा सकता है। क्या हर्ज है। आखिर पता तो चले कि अपने मित्र को तपस्वी ने क्या भेजा है और विचार करते-करते युवक ने डिब्बा खोला, उसे आश्चर्य हुआ, उसमें एक चूहा था। डिब्बा खुला तो चूहा उछला और डिब्बे के बाहर निकल कर भाग गया। युवक देखता ही रह गया। अब खाली डिब्बा हाथ में था। युवक सोचने लगा, तपस्वी ने अच्छा मजाक किया।
जैसे-तैसे वह तपस्वी के मित्र के घर पहुंचा, खाली डिब्बा दिया और पूरा वर्णन सुना दिया। युवक ने कहा, ‘‘गुरु जी ने अच्छा मजाक किया।’’
गुरु के मित्र ने कहा, ‘‘यह मजाक नहीं, एक गंभीर परीक्षा थी। वह जानना चाहते थे कि तुम शिष्य बनने योग्य हो भी या नहीं। तुम्हारा मन उनके मना करने के बाद भी भटक गया। जो एक चूहे को गंतव्य तक नहीं पहुंचा सकता वह ईश्वर के मार्ग का राही कैसे बन सकता है। ईश्वर के राज्य में अपार धैर्य और आशा को धारण करना पड़ता है। कोई छोटा मार्ग नहीं है।’’