परमात्मा तक पहुंचने का केवल एक ही मार्ग है, जानें क्या
punjabkesari.in Tuesday, Dec 10, 2019 - 09:34 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
संसार का हर व्यक्ति कामयाबी पाने के लिए बेचैन है। जो जिस भी क्षेत्र में है वह अपनी पहचान कायम करना चाहता है। यह बेचैनी स्वाभाविक है। मुश्किल यह है कि आगे जाने की कोशिश में बहुत कुछ पीछे छूटता चला जाता है। आप चाहें भी तो उसे पकड़ कर नहीं रख सकते। पकड़ने का मतलब है कि आपको वहीं ठहर जाना पड़ेगा। तब आप ही समय से पीछे छूट जाएंगे।
श्री राम वनवास गए तो घर-परिवार, राजपाट पीछे छूट गया। कृष्ण आगे बढ़े तो देवकी-वासुदेव, नंद-यशोदा, राधा, बलराम, सुदामा छूट गए। बुद्ध और महावीर साधना के पथ पर आगे बढ़े तो उनसे भी बहुत कुछ पीछे छूट गया। ध्यान दें एक भी ऐसा आख्यान नहीं है कि इनमें से कोई भी अवसाद में गए हों। वे आनंद के साथ अंदर और बाहर की दुनिया की दूरी को तय करते रहे। यह त्याग है। त्याग निश्चित तौर पर हमेशा सुपरिणाम लाता है। राम हो या कृष्ण, बुद्ध हो या महावीर वे हमेशा जागृत अवस्था में रहते थे। यह अवस्था कल्याण और निर्माण की होती है। अगर हम भी मनुष्यता की परवाह करते हुए आगे बढ़ते हैं तो समझिए कि हम जागे हुए हैं। यह जागना एक तरह की आत्म दृष्टि है। इसके आते ही न केवल मन के विकार नष्ट होते हैं बल्कि दुखों का भी अंत होता है। परमात्मा तक पहुंचने का भी यह एक सुगम मार्ग है। आखिर देवता भी इसे प्राप्त करने के लिए क्यों तरसते हैं।
यह भी याद रखें कि जो विचार अपने को चारदीवारी में बांध लेता है वह कभी पनप नहीं सकता। जैसे बंधा पानी सागर तक नहीं पहुंच सकता, वैसे ही बंधा हुआ विचार सत्य को नहीं छू सकता। पानी चलता रहे तो सागर बन जाता है। विचार गतिशील रहे तो सत्य बन जाता है।