रोगों की शांति और जीवन में प्रसन्नता हेतु इस मंत्र से बढ़कर कुछ और उपाय नहीं है

punjabkesari.in Sunday, Sep 10, 2017 - 12:43 PM (IST)

भारतीय संस्कृति में धार्मिक कृत्यों का अपना महत्व है। विभिन्न धर्म ग्रंथों, वेद, पुराण आदि में अनेक ऐसे मंत्र और अनुष्ठान दिए गए हैं जिनके द्वारा जटिल से जटिल बीमारियों, कष्टों, समस्याओं का निवारण संभव है। यहां तक कि अकाल मृत्यु और दुर्घटना से बचाव के लिए इन मंत्रों का विधिपूर्वक जाप किया जा सकता है। ऐसा ही एक मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र, जिसे रुद्र मंत्र, त्रयम्बकम मंत्र, मृत संजीवनी मंत्र आदि नामों से जाना जाता है। पद्म पुराण में वर्णित इस मंत्र को महर्षि मार्कंडेय द्वारा तैयार किया गया था। कहा जाता है कि मार्कंडेय ही एक मात्र ऐसे ऋषि थे जिन्हें इस महामंत्र का ज्ञान था। महर्षि शुक्राचार्य ने भी इस महामंत्र के द्वारा अमृत सिद्धि प्राप्त की थी।


महामृत्युंजय मंत्र को भगवान शिव की मृत्युंजय के रूप में समर्पित माना गया है। इस मंत्र के बीज अक्षरों में विशेष शक्ति है। इस मंत्र को ऋग्वेद का हृदय भी माना जाता है। मैडीटेशन के लिए इस मंत्र से बेहतर कोई और मंत्र नहीं है। मंत्र की श्रद्धापूर्वक साधना करने से जीवन में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता तथा दुर्घटना आदि से बचाव होता है। इस मंत्र को शुद्ध रूप में इस प्रकार पढ़ा जाता है : 


ॐ हौं जूं स: भूर्भुव: स्व:


ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनानमृत्योर्मुक्षीय मामृतात।


स्व:भुव: भू ॐ स: जूं हौं ॐ।


कैसे करें साधना 
महामृत्युंजय मंत्र की साधना पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा के साथ विधि-विधान से करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जाप शुक्ल पक्ष के सोमवार को भगवान शिव के मंदिर में कम से कम एक लाख बार किए जाने का विधान है। इसके लिए या तो स्वयं अथवा किसी वेद पाठी ब्राह्मण की मदद ली जा सकती है। मंत्र का जाप करते समय शिव भगवान पर सफेद पुष्प, दूध, बेल पत्र, फल आदि अर्पित करने चाहिएं। शिव जी की पूजा में सभी तरह के सुगंधित पुष्प जैसे कनेर, धतूरा, कटेरी, अपराजिता, चम्पा, शीशम, पलाश, नीलकमल, केसर, बेला, गूलर, जयंती, नागचम्पा, तगर, चमेली, गूमा आदि चढ़ाए जा सकते हैं, परंतु केतकी, कदम्ब, कपास, गाजर, सेमल, अनार, जूही, मदंती, कैथ, बहेड़ा और केवड़े के पुष्प चढ़ाने का निषेध है।


मंत्र जाप के लाभ 
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से साधक की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। अरिष्ट और अनिष्ट को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जा सकता है। शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव, शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैया के अशुभ फल कम करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। रोगों की शांति और जीवन में प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु इस मंत्र से बढ़कर कुछ और नहीं है।


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