सामाजिक परिवर्तन और समाज सुधार में स्वामी दयानंद का "वैज्ञानिक दृष्टिकोण"

punjabkesari.in Friday, Dec 10, 2021 - 04:07 PM (IST)

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परिवर्तन समज का एक अनिवार्य नियम हैै। आदिकाल से ही समाज में परिवर्तन होते रहे हैं चाहे मनुष्य ने उन हो रहे परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई या नहीं। भारतीय समजा भी परिवर्तन के इस नियम से अछूता नहीं रहा, परंतु शताब्दियों की राजनीतिक पराधीनता के कारण इन परिवर्तनों के प्रति उसमें कुछ असंवेदनशीलता आ गई। इसके परिणामस्वरूप भारतवासियों को दुर्बलता, दरिद्रता, हीनभावन तथा अन्य विकारों का शिकार बनना पड़ा। राजीतिक, आर्थित तथा धार्मिक उत्पीड़न एवं आत्मबोध के अभाव के भारतीय समाज में बहुत सी ऐसी कुंठाओं को जन्म दिया जिनका सहसे उन्मूलन संभव नहीं था।  स्वामी दयानंद ने एक धर्म संशोधक व धर्म व्याख्याता के साथ-साथ एक समाजशास्त्री के रूप में भारतीया समाज की इस अवस्था को पढ़ा और उसे सुधारने का प्रयत्न किया। 

स्वामी जी द्वारा किए गए समाज सुधार
भारतीय समाज में हो रहे नकारात्मक परिवर्तनों ने महर्षि दयानंद को बहुत गहराई से प्रभावित किया । उन्होंने भारतीय समाज के धार्मिक दृष्टिकोण के साथ-साथ उसकी सामाजिक परिस्थितियों तथा एक साधारण व्यक्ति की व्यथाओं व परेशानियों का वैज्ञानिक अन्वेषण किया। इसीलए स्वामी जी द्वारा किए गए समाज सुधारे चाहे वह नारी उत्थान के विषय में हो या हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों व कुप्रथाओं अथवा मूर्तिपूजा या कर्मकांडों का खंडन हो, सभी वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसे गए। स्वामी जी से समाज सुधारे में एक महत्वपूर्ण बात थी कि वह समाज में परिवर्तन लाने के लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि, विवेकशक्ति और चिंतन प्रणाली का प्रयोग करने के लिए कहते थे तथा उसके लिए उसे उचित वातावरण भी देने का प्रयत्न करते थे। यह उनके प्रगतिशील विचारों तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रमाण है। 

बाल विवाह का वैज्ञानिक आधार पर विरोध
स्वामी जी के समाज सुधार के कार्य उनके द्वारा समाज के गहरे अध्य्यन पर आधारित थे। यह अध्य्यन समाज की वास्तविक परिस्थितियों अर्थात सत्य पर आधारित था और सत्य के विषय में उनके विचार बहुत स्पष्ट थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं स्वस्थ मनुष्य और स्वस्थ समाज के विकास में बाधक हैं। 

बाल विवाह का विरोध करने के पीछे एक वैज्ञानिक आधार यह भी था कि मनुष्य में प्रजनन क्षमता तथा प्रक्रिया यौवनावस्था (12 वर्ष से 16 वर्ष) में चरण सीमा पर होती है और इस अवस्था में ननुष्य मानसिक व शारीरिक रूप से पूर्ण विकसित नहीं होता इसलिए उन्होंने स्त्री और पुरुष के विवाह की आयु उनके पूर्ण रूप से विकसित और मानसिक व शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाने पर निश्चित की। 

अर्थशास्त्र पर आधारित गौ रक्षा
स्वामी दयानंद के समाज सुधार में गौधन की रक्षा तथा गौहत्या के विरुद्ध संघर्ष भी बहुत महत्वपूर्ण है। गोधन को स्वामी जी मनुष्य जाति के लिए बहुत उपयोगी और जीवनदायी मानते थे। इसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने गोधन के अर्थशास्त्र को समझाया। यह भी उनके समाज सुधार का एक वैज्ञानिक आधार ही था जिसमें उन्होंने साधारण मनुष्य की आवश्यकता को ध्यान में रखकर एक संतुलित समाज के विकास का मार्ग बनाया। यह उस समय का एक आवश्यक सुधार क्षेत्र था जिसमें समाज भी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अपने संसाधनों को सुरक्षित रखने और विकसित करने के लिए प्रेरित करना आवश्यक था। 

समग्र सुधार का आह्वान
स्वामी दयामंद के चिंतन और कार्यों में सतत् गतिशीलता तथा प्रगतिशील विचारा धारा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। धार्मिक क्षेत्र व सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ उन्होंने राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में भी अपने समकालीन समाज सुधारकों की तुलना में अधिक प्रगतिशील विचार दिए। धार्मिक क्षेत्र में परिवर्तन लाना हो उनका लक्ष्य था ही, स्वदेश की हीव अवस्था में भी वह पूरी तरह परिचित थे। उनकी यह धारण बन चुकी थी कि अंग्रेजी शासन में प्रचलित न्याय प्रणाली दोषपूर्ण है। उनका विश्वास था कि प्राचीन काल में प्रचलिल पंचायक प्रणाली जिसमें निवासियों के आपसी वाद-विवादों को मिल बैठकर सुलझा लिया जाता है, ग्राम पंचायत व्यवस्था भारत जैसे ग्रामीण प्रधान देश के लिए अनुकूल है। 


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Content Writer

Jyoti

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