रक्षा बंधन से जुड़ी ये पौराणिक कथाएं नहीं जानते होंगे आप

punjabkesari.in Thursday, Aug 15, 2019 - 12:34 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
आज स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, 2019 के साथ-साथ देश में रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जा रहा है। हर भाई-बहन के लिए ये रिश्ता बहुत ही खास होता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उनकी सलामती व तरक्की की कामना करती हैं। भाई भी उन्हें जीवनभर उनकी रक्षा करने का वादा देते हैं। भाई-बहन के खट्टे-मीठे इस रिश्ते की अपनी एक अलग ही खासियत है। बता दें हर साल श्रावण महीने के अंतिम दिन रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। ये त्यौहार देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। तो ज़ाहिर सी बात हैं कि इस त्यौहार के बारे में सब जानते होंगे। मगर ये त्यौहार कैसे, कब और किसके द्वारा शुरू हुआ इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आज राखी के इस खास मौके पर हम आपको हिंदू धर्म के ग्रंथों में वर्णित इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं बताने वाले जिनके बारे में शायद आपको पता ही नहीं होगा।  
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प्राचीन काल में रक्षासूत्र बांधने की परंपरा
अगर अब एक दृष्टि अपने शास्त्रों पर डालें तो पता चलता है कि वैदिक काल से लेकर आज तक समाज में पुरोहितों द्वारा यजमानों को रक्षासूत्र बांधे जाने की परंपरा है। प्राचीन काल में पुरोहित राजा और समाज के वरिष्ठजनों को श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधते थे। रक्षा सूत्र को बांधने के पीछे का मुख्य उद्देश्य होता था कि राजा और वरिष्ठजन समाज, धर्म, यज्ञ एवं पुरोहितों की रक्षा करेंगे। मान्यता है कि इस परंपरा की शुरुआत देवासुर संग्राम से हुई थी।
 

देवराज इंद्र व उनकी पत्नी शचि द्वारा शुरू किया रक्षा बंधन
भविष्‍यपुराण में किए उल्‍लेख के अनुसार सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर हुआ। जिसने अपने साहस और पराक्रम के बलबूते देवताओं को हराकर कर स्‍वर्ग पर अधिकार प्राप्त कर लिया था। कहा जाता है वृत्रासुर को वरदान था कि कोई भी अस्‍त्र-शस्‍त्र उसे पराजित नहीं कर सकता। जिसके चलते देवराज इंद्र उससे बार-बार हार जाते थे।
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जिसके बाद तभी महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का परित्‍याग किया और उनकी हड्डियों से इंद्र का अस्‍त्र वज्र बनाया गया। फिर इंद्र देव ने अपने गुरु बृहस्‍पति के पास बताया कि वो वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे हैं और कहा कि अगर वो विजयी हुए तो ठीक अन्‍यथा वीरगति को प्राप्‍त होकर ही लौटेंगे। अपने पति ये बातें सुनकर देवराज की पत्‍नी देवी शची ने अपने तपोबल से अभिमंत्रित करके एक रक्षासूत्र बनाया और देवराज इंद्र की कलाई पर बांध दिया। कहा जाता है कि जिस दिन शची ने इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था वह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कहते हैं इसके बाद देवराज विजयी होकर लौटे थे, उन्‍होंने यह वरदान दिया कि इस दिन जो भी व्‍यक्ति रक्षासूत्र बांधेगा, वह दीघार्यु और विजयी होगा। कहा जाता है इसके बाद से ही रक्षासूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई जो देवी लक्ष्मी और राजा बलि के रक्षाबंधन से भाई बहन का त्यौहार बन गया।

द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण का रक्षाबंधन
महाभारत काल के दौरान इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल का वध करने करते समय भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाया। जिससे उनकी उंगली थोड़ी कट गई और खून आ गया। जिसे देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान की उंगली पर लपेट दिया था। कहते हैं जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इस घटना के बाद द्रौपदी को वचन दिया था कि वह समय आने पर उसकी साड़ी के एक-एक धागे का मोल चुकाएंगे। जिसे उन्होंने चीर हरण के समय निभाया था।
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जब युधिष्ठिर ने बांधी राखी
कहते हैं कि जब धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्‍होंने श्रीकृष्‍ण से युद्ध में विजयी होने के लिए प्रश्‍न किया कि आखिर वह इस युद्ध में विजय कैसे प्राप्‍त करें। तब श्री कृष्‍ण ने उन्‍हें सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की बात कही। उन्‍होंने कहा कि इस रक्षासूत्र से व्‍यक्ति हर परेशानी से मुक्ति पा सकता है। कथा मिलती है कि जिस दिन युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा वह भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था।
 


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Jyoti

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