श्रीमद्भगवद्गीता: अज्ञानी का शोक नष्ट कर सकते हैं श्रीकृष्ण

punjabkesari.in Saturday, Sep 05, 2020 - 05:52 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता 
यथारूप 
व्याख्याकार : 
स्वामी प्रभुपाद 
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

श्लोक-
संजय उवाच तं तथा  कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन:।

अनुवाद : संजय ने कहा : करुणा से व्याप्त, शोकयुक्त, अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर मधुसूदन, कृष्ण ने निम्रलिखित शब्द कहे।

तात्पर्य : भौतिक पदार्थों के प्रति करुणा, शोक तथा अश्रु-ये सब आत्मा के प्रति अज्ञान के लक्षण हैं। शाश्वत आत्मा के प्रति करुणा ही आत्म साक्षात्कार है। इस श्लोक में मधुसूदन शब्द महत्वपूर्ण है। श्री कृष्ण ने मधु नामक असुर का वध किया था और अब अर्जुन चाह रहे हैं कि श्री कृष्ण उस अज्ञान रूपी असुर का वध करें जिसने उसे कत्र्तव्य से विमुख कर रखा है।  

यह कोई नहीं जानता कि करुणा का प्रयोग कहां होना चाहिए। डूबते हुए मनुष्य के वस्त्रों के लिए करुणा मूर्खता होगी। अज्ञान सागर में गिरे हुए मनुष्य को केवल उसके बाहरी पहनावे अर्थात स्थूल शरीर की रक्षा करके नहीं बचाया जा सकता। जो इसे नहीं जानता और बाहरी पहनावे के लिए शोक करता है, वह वृथा ही शोक करता है। अर्जुन तो क्षत्रिय था, अत: उससे ऐसे आचरण की आशा न थी किन्तु भगवान कृष्ण अज्ञानी पुरुष के शोक को विनष्टï कर सकते हैं और इसी उद्देश्य से उन्होंने भगवद्गीता का उपदेश दिया। 

यह अध्याय हमें भौतिक शरीर तथा आत्मा के वैशेषिक अध्ययन द्वारा आत्म-साक्षात्कार का उपदेश देता है जिसकी व्याख्या परम अधिकारी भगवान कृष्ण द्वारा की गई है। यह साक्षात्कार तभी संभव है जब मनुष्य निष्काम भाव से कर्म करे और आत्म बोध को प्राप्त हो।

(क्रमश:)
 


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Jyoti

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