जानिए उस ‘पवित्र रसोई’ के बारे में, जहां माता सीता ने पकाए थे चावल

punjabkesari.in Tuesday, May 04, 2021 - 11:32 AM (IST)

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राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है जिसे सीता रसोई के नाम से पुकारा जाता है। मान्यता है कि सीता जी ने यहां चावल पकाए थे। यह रसोई एक प्राचीन मंदिर के निकट अत्यन्त प्राचीन गुफा में स्थित है। इसमें पत्थरों पर खुदे कुछ दुर्लभ चित्र भी मौजूद हैं।

सीता रसोई, जसरा बाजार, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
घूरपुर तथा जसरा बाजार से पूर्व दिशा में यमुनाजी के किनारे भगवान शिव के एक प्राचीन मंदिर के निकट ही अत्यन्त प्राचीन गुफा है। एक छोटी-सी पहाड़ी पर बनी इस गुफा में पहाड़ी पर खोद कर चित्र बनाए गए हैं। स्थानीय लोग इसे भी सीता रसोई कहते हैं। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/55/23 से 33, मानस 2/109 दोहा 2/109/1 2/ 111/1  2/220/1, 2) 

सिमरी घाट, सिमरी (यमुना) इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
श्री सीता-राम जी ने यहां यमुना के तट पर रात्रि विश्राम किया था। यात्री को चाहिए कि जलालपुर घाट पर अपना वाहन छोड़कर नाव से यमुनाजी पार कर सुजावन देवता के दर्शन कर सीता रसोई के दर्शन करें। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/55/23)

तापस हनुमान मंदिर, मुरका धाम, चित्रकूट, उ. प्र.
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में यमुना जी के तट पर स्थित मुरका धाम में तापस हनुमान की एक विलक्षण प्रतिमा है। नृत्य मुद्रा में विराजमान हनुमान जी के ये विग्रह अत्यंत जागृत माने जाते हैं। पूजन में नियम निष्ठा में कोई चूक हो जाए तो पुजारी को कठोर दंड भुगतना पड़ता है। ऐसे में कोई पुजारी लंबे समय तक यहां टिक नहीं पाता है। हनुमान जी की इस प्रतिमा के बारे में रहस्यात्मक विवरण यह प्राप्त हुआ है कि यहां गुप्त रूप से भगवान राम और हनुमान जी का प्रथम मिलन हुआ था। इस धाम का मुरका नाम भी विशिष्ट है। मुरकाना का अर्थ है वापस भेजना। भरद्वाज ऋषि ने 4 शिष्य श्रीराम को मार्ग बताने के लिए साथ भेजे थे। श्रीराम ने वे चारों शिष्य यहां से वापस भेज दिए थे। हनुमान जी की नृत्य मुद्रा में एकमात्र मूर्ति यहां देखी गई है जो मानस में बताए एक तापस के स्वरूप से पूर्णत: मेल खाती है। (ग्रंथ उल्लेख : मानस 2/108/2 2/109/4 से 2/210/3 तक)

सीता रसोई, जनवां, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में प्रयागराज जिले में टकटई गांव से 3 किलोमीटर तथा ऋषियन से 6 किलोमीटर दूर जनवां में एक पहाड़ी पर एक चिकनी शिला है। इस शिला पर सीता मां ने चावल पकाए थे। गुफा के द्वार पर चित्रलिपि में कुछ लिखा है जो अभी तक पढ़ा नहीं जा सका। सीता रसोई के प्रति लोकमानस में अद्भुत आस्था है। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/55/23 से 33, मानस 2/109 दोहा से 2/111/1, 2/220/1, 2)

शिव मंदिर, ऋषियन, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
ऋषियन शब्द ऋषियों का अपभ्रंश है। रामायण काल में यहां ऋषि मंडल था। यहां पहुंचने के लिए शंकरगढ़, मऊ होते हुए कोटरा गांव तक पक्की सड़क है। श्रीराम इधर से ही गए थे।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/55/23 से 33, मानस 2/109 दोहा से 2/111/1, 2/220/1, 2)

सीता पहाड़ी, चित्रकूट, उ.प्र.
गहरे जंगल में सीता रसोई से लगभग 4 कि.मी. दूर सीता पहाड़ी है। श्री सीता-राम जी ने यहां विश्राम किया था। गुफा के द्वार पर चित्रलिपि की कहानी सीता रसोई की तरह यहां भी रहस्य बनी हुई है। (ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 2/55/23 से 33, मानस 2/109 दोहा से 2/111/1, 2/220/1, 2) —डा. राम अवतार
 


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Content Writer

Jyoti

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