श्रीमद्भगवद्गीता:साधारण मनुष्य की तुलना में ये लोग होते हैं भौतिक इच्छाओं से मुक्त

punjabkesari.in Thursday, Apr 27, 2017 - 04:51 PM (IST)

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद अध्याय छह ध्यानयोग
शुद्ध भक्त के दिव्य कार्य 

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।
निस्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥ 18॥

शब्दार्थ :
यदा—जब; विनियतम—विशेष रूप से अनुशासित; चित्तम—मन तथा उसके कार्य; आत्मनि—अध्यात्म में; एव—निश्चय ही; अवतिष्ठते—स्थित हो जाता है; निस्पृह—आकांक्षारहित; सर्व—सभी प्रकार की; कामेभ्य:—भौतिक इन्द्रिय तृप्ति से; युक्त:—योग में स्थित; इति—इस प्रकार; उच्यते—कहलाता है।

अनुवाद : जब योगी योगाभ्यास द्वारा अपने मानसिक कार्यकलापों को वश में कर लेता है और अध्यात्म में स्थित हो जाता है अर्थात समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो जाता है तब वह योग में सुस्थिर कहा जाता है।

तात्पर्य : साधारण मनुष्य की तुलना में  के कार्यों में यह विशेषता होती है कि वह समस्त भौतिक इच्छाओं से मुक्त रहता है जिनमें मैथुन प्रमुख है। एक पूर्णयोगी अपने मानसिक कार्यों में इतना अनुशासित होता है कि उसे कोई भी भौतिक इच्छा विचलित नहीं कर सकती। यह सिद्ध अवस्था कृष्णभावनाभावित व्यक्तियों द्वारा स्वत: प्राप्त हो जाती है।         
(क्रमश:)


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