श्रील भक्ति किंकर दामोदर गोस्वामी महाराज: इस स्थान पर जगन्नाथ जी के दर्शन करने से पूरे साल का पुण्य मिलता है

punjabkesari.in Thursday, Jun 30, 2022 - 11:57 AM (IST)

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हिंदूओं के चारो धामों में से एक श्री जगन्नाथ पुरी में 1 जुलाई से श्री जगदीश रथयात्रा महोत्सव प्रारंभ होगा। बहन श्री सुभद्रा जी, दाऊ श्री बलराम जी एवं श्री कृष्ण जी भव्य रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देंगे। कुंडली टीवी के एडिटर श्री नरेश अरोड़ा को हाल ही में श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी के शिष्य श्रील भक्ति किंकर दामोदर गोस्वामी महाराज जी से भेंट करने का सुंदर अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने महाराज जी से जगन्नाथ रथयात्रा से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे। आप भी उठाएं इस साक्षात्कार का लाभ

श्री जगन्नाथ जी की लीला द्वारका की है या ब्रज धाम की
श्री जगन्नाथ जी की लीला ब्रज की लीला है, जो ब्रज की लीला है वही वृंदावन की लीला है। दोनों एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं बल्कि एक ही हैं। जगन्नाथ अवतार नहीं हैं बल्कि साक्षात श्री कृष्ण ही हैं, जो रहते तो द्वारिका में हैं लेकिन उनकी अत्मा आज भी वृंदावन में ही बसती है। कृष्ण के जो स्वरुप हैं उनका आचरण व व्यक्तित्व दो अलग-अलग रुपों में है। देखने वाले भक्त उन्हें दो अलग रुपों में अनुभव करते हैं। जो ब्रज का भाव है वो माधुर्यम् है और जो द्वारका का है वे ऐश्वर्या से युक्त है। द्वारका के अंदर कृष्ण राजा हैं वृंदावन में वो अपने हैं। जब अपनेपन का भाव पराकाष्ठा में प्रकाशित हुआ, वही श्री जगन्नाथ जी हैं। जगन्नाथ जी की लीला ब्रज की लीला है।

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अगर जगन्नाथ जी की लीला ब्रज की है तो इसमें राधारानी का वर्णन क्यों नहीं आता ?
राधारानी नहीं हैं तो जगन्नाथ जी ही नहीं हैं। वास्तविकता में जो लोग शास्त्रों के बारे में जानते हैं, उन्हें मालुम है आत्माराम जो खुद अपने अंदर रमण करने वाले हैं उनकी आत्मा ही राधारानी हैं। स्कंद पुराण के अनुसार जब रोहिणी मैया ने श्री कृष्ण लीलाओं का बखान करना आरंभ किया तो उन ब्रज की लीलाओं में श्री कृष्ण का प्रवेश न हो तो उन्होंने सुभद्रा जी को बाहर द्वार पर खड़ा कर दिया। रोहिणी मैया ने साक्षी बनकर जितनी भी ब्रज की लीलाओं का वर्णन किया उनमें हर तरह के रस का वर्णन आता है। श्री कृष्ण उन लीलाओं को सुनकर ही इस रुप (जगन्नाथ जी) में आए। अब श्री कृष्ण विचलित हुए हैं तो राधारानी के प्रेम की पराकाष्ठा के बिना ये संभव नहीं हो पाता लेकिन जो शरणागत भक्त होते हैं, उन्हें ही यह भाव समझ में आता है अन्यथा आप देखेंगे की जो जगन्नाथ जी का रुप है। जब वो रथ में बैठते हैं तो ये उसी भाव में चलते हैं, जब गोपियां उन्हें अपने प्रेम से हांकती हैं। उनकी अधिष्ठात्री देवी राधिका रानी हैं। उनके अभाव में ये संभव नहीं है। राधारानी के बिना श्याम सुंदर ही नहीं हैं। 

रथयात्रा के दौरान श्री जगन्नाथ जी गुंडिचा मंदिर में ही क्यों रुकते हैं, किसी अन्य मंदिर में क्यों नहीं रुकते
गुंडीचा मंदिर में इसलिए रुकते हैं क्योंकि उसे सुंदराचल कहते हैं यानी उसे वृंदावन माना गया है। नीलांचल यानी द्वारका। द्वारका से वृंदावन गमन की जो लीला है, वही रथयात्रा है। जब कृष्ण द्वारका में हैं, वो वृंदावन जा रहे हैं। मुख्य रुप से जगन्नाथ जी का जो प्रकट स्थान है वो भी गुंडिचा मंदिर है। इसी कारण से श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की तरफ यात्रा की जाती है।

गुंडिचा मंदिर को उनकी मौसी का घर क्यों कहा जाता है, गुंडिचा देवी कौन हैं
गुंडिचा महाराज इंद्र धुम की पत्नी का नाम है। उनके नाम पर जगन्नाथ जी की सेवा का निर्माण किया गया लेकिन भाव यह है की जगन्नाथ जी सुंदराचल से नीलांचल जा रहे हैं। पुराणों में आता है की कुरुक्षेत्र में जब श्री कृष्ण वृंदावन वासियों को मिलने की इच्छा से वहां आते हैं तो वे उन्हें मिलकर उन्हें मनाते हैं की आप वापिस ब्रज में चलें। जब वो प्रेम की पराकाष्ठा को अनुभव करते हैं तो जगन्नाथ भाव में वो वृंदावन की तरफ गमन करते हैं। ये लीला ही जगन्नाथ जी के मंदिर की कहानी है। 

गुंडिचा मंदिर को उनकी मौसी का घर कहा जाता है लेकिन पुराणों में ऐसा कोई वर्णन नहीं है। केवल मान्यता के अनुसार ही ऐसा बोला जाता है। 

भक्त और भगवान के बीच कोई भी सांसारिक रिश्ता नहीं होता। गुंडिचा मंदिर वृंदावन का अभिन्न भाग है। जगन्नाथ जी जब गुंडिचा मंदिर में जाते हैं तो उनकी सेवा का तरीका भी बदल जाता है। जब वो श्री मंदिर में रहते हैं तो वहां उनकी सेवा महालक्ष्मी करती हैं लेकिन जब वो गुंडिचा मंदिर में रहते हैं तो व्रजवासी उनकी सेवा करते हैं। 

पुरषोत्तम धाम में प्रचलित है की जो व्यक्ति गुंडिचा में उनका दर्शन करते हैं उसे पूरा साल जगन्नाथ जी के दर्शन करने का फल मिलता है। दशमी के दिन वे वापिस श्री मंदिर में आने की तैयारी करते हैं तो नवमी का जो दिन है, रथयात्रा के बाद वो दर्शन को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अगर आप वहां रह सकते हैं, वहां की सेवा कर सकते हैं तो आपको स्पष्ट दिखाई देगा की श्री जगन्नाथ जी की सेवा माधुर्य भाव से हो रही है। वहां केवल प्रेम है ऐश्वर्य नहीं है। गुंडिचा वृंदावन है। श्री कृष्ण ब्रजवासियों को मिलने जा रहे हैं। ब्रज वाले सभी उनके रिश्तेदार हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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